✍रंजन प्रधान
जिस डिजिटल मीडिया की उपयोग करके मोदीजी के नेतृत्व वाली भाजपा 2014 और 2019 मे सबसे ज्यादा चुनावी सफलता हासिल किया था, उस डिजिटल मीडिया अब भाजपा सरकार को कड़वा क्यों लग रहा है? जिस डिजिटल मीडिया ने कभी मोदी और शाह को फूल की तरह खुशबू देता था, वह आज क्यों बदबू दे रहा है? जिस डिजिटल मीडिया को संभालने के लिए अमित मालवीय जैसे भाजपा नेता आईटी सेल के नाम पर अपना प्रभाव बढ़ाने में सक्षम थे; क्या आज उनका डिजिटल ज्ञान काम नहीं कर रहा है?
मोदी सरकार द्वारा डिजिटल मीडिया पर क्रोधित होने का मुख्य कारण यह है कि एक समय डिजिटल मीडिया मोदी की प्रशंसा में शतमुख था। लेकिन आज डिजिटल मीडिया मोदी के झूठ की प्रशंसा नहीं कर रहा है; बल्कि डिजिटल मीडिया के जरिए मोदी सरकार का चेहरा बेनकाब हो रहा है। डिजिटल मीडिया में मोदी का झूठ पकड़ा जा रहा है। इसलिए सरकार इस डिजिटल मीडिया पर नकेल कसने की सोच रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि डिजिटल मीडिया का कोई खास मालिक नहीं है, जिसे मोदी-शाह पकड़ सकें। इसलिए डिजिटल मीडिया बेकाबू है। यह मोदी की भाजपा के लिए असहनीय हो गया है। तो मोदी सरकार डिजिटल मीडिया पर अंकुश लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से नई रणनीति लागू करने जा रही है। सरकार सुप्रीम कोर्ट के जरिए ऐसा करना चाहती है, न कि खुद सरकार के जरिए। केंद्र सरकार डिजिटल मीडिया पर अंकुश लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पर दबाव डाल रही है। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने एक बयान जारी कर डिजिटल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया है। सुप्रीम कोर्ट को ढाल करते हुए, सरकार ने एक नई चाल खेलना शुरू कर दिया है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि डिजिटल मीडिया नियंत्रण से बाहर है। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने एक बयान दायर कर सुप्रीम कोर्ट से डिजिटल मीडिया पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाने का आग्रह किया है। एक आरएसएस विचारक द्वारा आयोजित एक विवादास्पद टीवी शो के मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह बताया। टीवी प्रचार कर रहा था कि मुसलमान भारतीय सिविल सर्विस में जबरन घुसपैठ कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है। उस प्रोग्राम का नाम था “यूपीएससी जिहाद”। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के सांप्रदायिक तनाव के प्रसारण पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया है कि केंद्र सरकार ने इस तरह के सांप्रदायिक उत्तेजक कार्यक्रम की अनुमति कैसे दी। अदालत द्वारा इस तरह के आरोपों से ध्यान हटाने के प्रयास में सरकार ने डिजिटल मीडिया को दोषी ठहरा कर अपनी बेबसी से पर्दा उठा लिया है।
केंद्र सरकार ने सुदर्शन टीवी शो विवाद से नज़र हटाने के लिए डिजिटल मीडिया को टार्गेट किया है। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय के एक बयान के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय को इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया की गतिविधियों के बारे में नहीं सोचना चाहिए, लेकिन डिजिटल मीडिया को नियंत्रण में लाना चाहिए। उन्होंने कहा, डिजिटल मीडिया अब नियंत्रण से बाहर हो गया है और झूठी, नफरत फैलाने वाली खबरें प्रसारण कर रही हैं जो हिंसा पैदा करने में अहम भूमिका निभा रही हैं। यहाँ बता दें कि, सुदर्शन टीवी “बिंदास बोल” कार्यक्रम के माध्यम से अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को टार्गेट कर रहा था। कोर्ट ने सवाल किया कि केंद्र सरकार ने ऐसे टीवी शो की अनुमति कैसे दी। भगवान जाने कि इस देश में क्या चल रहा है।
‘उपत्यका’
निगिनिपुर, सानजरिआ, केंद्रापड़ा, ओड़िशा
फोन: 9437213854
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