अचिन्त्य प्रभावशाली महामंत्र है नवकार मंत्र – मुनि रमेश कुमार
टिटिलागढ (बर्धमान जैन): नमस्कार महामंत्र की साधना से भाव शुद्धि, भावना की पवित्रता, आदर्श के प्रति स्थिरता की उपलब्धि होती है। नमस्कार महामंत्र का प्रारंभ ही नमन से होता है। णमो अर्थात् नमस्कार। नमना मानव जीवन का परम पवित्र कर्तव्य है। विनय आभ्यंतर तप है। नमस्कार महामंत्र के पवित्र पांच पदों को समर्पित होकर स्मरण करने से ।एकाग्रता के साथ जप करने से अहंकार का विसर्जन होता है।स्व का समर्पण होता है। विशुद्ध भावों से समर्पण ही भक्ति है । भक्ति से ही भगवत्तता की प्राप्ति होती है। परम पुरुष परमेष्ठि के प्रति स्व का समर्पण होता है। उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री रमेश कुमार जी ने टिटिलागढ ओडिशा के तेरापंथ भवन में आयोजित नमस्कार महामंत्र साधना और प्रयोग सप्ताह के समापन सत्र पर आयोजित धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किये।
जैन मुनि रमेश कुमार जी ने आगे कहा – नमस्कार महामंत्र में आध्यात्मिक और भौतिक दोनों सिद्धियां निहित है। इस महामंत्र के अचिन्त्य प्रभाव से चोर रक्षक बन जाता है, दुष्ट ग्रह अनुकूल बन जाते है और अपशगुन शगुन में परिणत हो जाते है। रोग , शोक , दुख द्रारिद्रय का विनाश करने में यह महामंत्र सक्षम है। जैन मुनि रमेश कुमार ने आगे कहा- इस एक महामंत्र के प्रभाव से अनेक मंत्र, बीजमंत्र का निर्माण हुआ है । इसीलिए यह नमस्कार महामंत्र सब पापों का नाश करने वाला और सब मंगलों में प्रथम मंगल है। यह मंगल भावनाओं का महामंत्र प्रात:काल उठते ही स्मरण करना चाहिए। उसके पश्चात मैत्री भावना और मंगल भावना का अनुचिंतन करना चाहिए।
मुनि रमेश कुमार जी के निर्देशन में सात दिन तक सुबह और रात्रि में नमस्कार महामंत्र के पांच चैतन्य कन्द्रों पर जप और ध्यान के प्रयोग कराये गये। नमस्कार महामंत्र के आध्यात्मिक विकास ग्रह शांति के कुछ मंत्रों के प्रयोग भी बताये गये ।
मुनि रत्न कुमार जी ने कहा- भारतीय संस्कृति में सेवा का बहुत महत्व है।जो सेवाभावी होते हैं वै अपने आप को सौभाग्यशाली मानते हैं। समाज भी ऐसे व्यक्ति का सम्मान करती है। सभी धर्म ग्रंथों में सेवा की महिमा बताई गई है। मुनि रत्न कुमार जी ने सेवा किसकी करें, कब करें, क्यों करें ? इसे विस्तार से समझाया।