अगर ग़लत राह पर मैं हूं
तो रोक लो मुझको ।
शब्द सभी आंधी में
पोलिथिन की तरह
इधर उधर उड़ रहे
समेट सको तो
समेट लो ।
क्लांत,श्लांत
उद्भ्रांत,दिग्भ्रांत
कारवां ए लफ्ज़ में
दिख न रही है
तस्वीर कोई
अगर मैं गिर रहा हूं
तो कुछ तो कहो मुझको ।
मूल ओड़िया: प्रफुल्ल चंद्र पाढ़ी
कोलनरा, रायगडा जिला
मो_8917324525
अनुवाद : ज्योति शंकर पण्डा
शरत, मयूरभंज
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