त्यागवीर शीतल प्रसाद यादव 

श्री शीतल प्र.यादव “महाशय जी” उपाख्य स्वामी शीतलानंद जी एक महान समाज सेवी, शिक्षा प्रचारक, समाज सुधारक व स्वतंत्रता सेनानी थे। गुलामी के दौर में भारत के इतिहास की एक महान यादव जाति गरीबी व अशिक्षा के कारण समाज में बहुत पीछे हो गई थी। वैसे में शीतल बाबू एक मसीहा के रूप में उस अंधेरे युग में शिक्षा रूपी प्रकाश को यादव समाज में फैलाने का महान कार्य किया।

जातीय उत्थान के लिए इन लोगों ने “गोपाल मण्डली” की स्थापना 1909 ई. में की, जो कि 1911 ई. में “गोप जातीय सभा” में परिणत हो गया और जिसमें बंगाल से पंजाब तक पूरे उत्तरी भारत के यदुवंशी सदस्य बने। शीतल महाशय आदि ने मिलकर जातीय उत्थान के लिए 1911ई. से 1923 ई. तक खुब काम किया। फिर पूरे भारत के सभी जातीय सभाओं को मिला कर “अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा” 1923 ई. में गठित हुआ।

शीतल प्र. यादव का जन्म संभल, मुरादाबाद (उ.प्र.) के यदुवंशी राजघराने से आकर बिहार के मुंगेर में शंकरपुर ग्राम को संस्थापित करने वाले जमींदार परिवार में हुआ था । इनके परिवार में भारत के पूर्व विदेश मंत्री, श्री वलिराम भगत (समस्तीपुर) और बिहार के प्रथम कानून मंत्री, श्री शिवनंदन मंडल, रानीपट्टी- मूरहो स्टेट (मधेपुरा) का ससुराल है। जब कि सामाजिक संघर्ष इन लोगों ने हमेशा एक साथ मिलकर किया था।

अपने जमींदारी के समय शीतल बाबू ने यादव जाति के उत्थान के लिए गृह त्याग कर वैराग्य ले लिया और पूर्वी यूपी, बिहार, बंगाल में घूम -घूम चंदा संग्रह करके यादव के गरीब बच्चों को पढाने में, स्कूलों को बनाने में, यादव समाज के कुरीतियों को दूर करने में, अंग्रेजों से लड़ने में और जातीय महासभा को आगे ले जाने हेतु आजीवन महती कार्य किया। वे बिहार में अपने आप में चलते फिरते एक संस्था थे क्योंकि वे अकेले दमपर पूरे पूर्वी भारत में गरीबों के बीच शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए कार्य किया। आज के तरह सिस्टमेटिक रूप में शिक्षण संस्थानों को अगर खड़ा किये होते तो उनका नाम गिनीज बुक में दर्ज हो गया होता जितना कि उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कार्य किया है। उनके कारण हजारों -हजार गरीब के बच्चे पढ़ लिख गये,आफिसर बने और महाशय जी के पदचिह्नों पर चलकर अपने समाज को ऊपर लाने का कार्य भी किया। शीतल बाबू को लोग गोप गांधी कहा करते थे। वे घोर समाजवादी विचार धारा के थे। अपने समाज को अंध परम्परा और कुरीतियों से बाहर निकालने के लिए भी उन्होंने अथक प्रयास किया।

दूसरी ओर शीतल बाबू के पत्नी और बच्चों को जीवन यापन के लिए घोर कष्टों का सामना करना पड़ा। जनेऊ पहनने के मुद्दे पर जातीय संघर्ष के कारण जब 1925 ई. में तथाकथित अगरी जाती के लोगों से यदुवंशियों के साथ लाखोचक, लक्खीसराय, मुंगेर में युद्ध हुआ तो तिरलोकी दास और शीतल बाबू नेतृत्वकर्ता बनकर उभरे । इस युद्ध में तथाकथित अगरों को मुंह की खानी पड़ी थी और अंग्रेजी सरकार को 16000 रूपये हर्जाना भी चुकाना पड़ा था जो कि बिहार के गजेटियर में दर्ज है ।

स्वामी शीतलानंद जी से प्रेरित होकर उनको अपना गुरु मानते हुए श्री रामलखन सिंह यादव , पूर्व केन्द्रीय मंत्री व अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा के पूर्व अध्यक्ष ने सैकड़ों हाई स्कूल -कालेज खोले जो एक व्यक्ति के नाम बहुत बड़ा रिकॉर्ड है ।

स्वामी शीतलानंद जी के कृत्य से प्रेरित होकर “यदुवंश की खोज ” नामक पुस्तक में लेखक श्री श्रवण कुमार यादव, कठनी, हवेली खड़गपुर (मुंगेर)ने स्वामी शीतलानंद के जन्म स्थली शंकरपुर ग्राम को यादवों का मथुरा- वृन्दावन का उपमा दे डाला। जिस शंकरपुर में वर्तमान में हजारों स्नातक हैं और जिसमें सैकड़ों तकनीकी स्नातक भी हैं।ये तो स्वामी शीतलानंद जी का ही देन है कि उनका गाँव- समाज शिक्षित और विकसित हो पाया।

उनके नाम से शीतलाश्रम (यादव छात्रावास),पूरब सराय, मुंगेर संस्थापित है और जहाँ कि पूर्व केन्द्रीय उपशिक्षा एवं समाजकल्याण मंत्री श्री डी.पी.यादव, संदलपुर,मुंगेर ने भी उनके नाम से “शीतल महाशय मेमोरियल सोसाइटी” स्थापित करवा दी है। 1952 ई. के 15 जुलाई को स्वामी शीतलानंद जी का लगभग 50-55 वर्ष के उम्र में एक बरसाती नाले के पानी में डूबने से देहांत हो गया और पूरे बिहार के यदुवंशीगण हृदय फाड़-फाड़ कर रोते हुए स्वामी शीतलानंद जी को विदाई दिया। इस प्रकार यदुवंश ने अपना एक महान लाल खो दिया।

श्यामनंदन कुमार यादव
बिहार

Sunil Kumar Dhangadamajhi

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