करके ज़ख्मी
मेरे सारे सपने
आकांक्षा की बिन्दु
तुम छिप गई
बेरंग फूल की पंखुड़ियों से
झर रही
तमाम संभावनाएं ।
धूप के पीठ पर
थके बटोही का इतना बड़ा बोझ
हो तुम !
लुप्त गीत के भग्नांश को
ताक रहा है समय ।
बिन्दु परिमित इच्छा के
प्रतिस्पर्धा में
शामिल होना पड़ा अब ।
हतभाग्य के भाग्य के
पेशानी पर काई ।
तीक्ष्ण समय की पंक्ति में
फालतु भीड़
धीरे धीरे
थर्थरायित कारवां ए लफ्ज़
निरर्थक अर्थ
समय ऐसे भागे मानो
जिन्दगी ख़त्म होने को है ।
तुम हो कहां !!!!
✒️मूल ओड़िया: प्रफुल्ल चंद्र पाढ़ी
कोलनरा, रायगडा जिला
मो_8917324525
✍🏾अनुवाद : ज्योति शंकर पण्डा