✒️प्रफुल्ल चंद्र पाढ़ी
सुनसान है रात ।।
काली चादर तले
समय का हाहाकार ।
मिट्टी से उठ रहा है दीर्घश्वास
पायल की झंकार
नींद में अब
सैकड़ों कहानियां ।।
धड़ धड़ करके बज रहा है
मन का किबाड़ ।
जल उठ रहे हैं
एक एक करके मोमबत्ती
धूप के रंग के ।।
शायद बारिश हो रही है !!!