रूस को बताया वजह
जो मीटिंग पिछले दिनों हुई थी उसमें ओपेक के कई लीडर्स ने रूस की वकालत की। रूस को ही इस ऐलान के पीछे की वजह माना जा रहा है। अमेरिका समेत कई देशों का कहना है कि सऊदी अरब और यूएई समेत ओपेक के बाकी सदस्यों का रवैया रूस की तरफ पक्षपात से भरा है और इस दावे में ज्यादा दम नजर नहीं आता है। ओपेक देश किसी से भी परहेज नहीं कर रहे हैं।
कई देश ऐसे हैं जो अमेरिका के अलावा रूस से भी अपने रिश्ते अच्छे चाहते हैं। इसके लिए वह कई ऐसे क्षेत्रों में काम करने को तैयार हैं जो काफी सीमित हैं। ओपेक देश रूस के साथ व्यापारिक रिश्ते बनाना चाहते हैं जिसके तहत सीधे तौर पर अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं होगा। लेकिन इनमें खतरा ज्यादा है और आने वाले समय में प्रतिबंधों की वजह बन सकते हैं।
अमेरिका ने दी धमकी
नए फैसले के बाद भी अमेरिका ने उम्मीद जताई है कि सुरक्षा संबंध आगे बढ़ेंगे और आर्थिक लक्ष्य पूरे होते रहेंगे। लेकिन यह भी तय है कि ओपेक का कटौती वाला ऐलान अमेरिका के साथ रिश्तों को बिगाड़ेगा। अमेरिका की तरफ से धमकी दी गई है कि प्रस्तावित कटौती के बाद सऊदी अरब और यूएई में तैनात मिसाइल सिस्टम और अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाया जा सकता है। अमेरिका का कहना है कि सऊदी अरब ने रूस का पक्ष लिया है और तेल की कीमतों में इजाफा करने का फैसला किया है। अमेरिकी कांग्रेस के एक सांसद की मानें तो अमेरिका को अब सुपरपावर की तरह बर्ताव करना होगा।
यूरोपियन यूनियन में हलचल
फैसले के पीछे की राजनीति और भू-राजनीति ने इस ऐलान को एक अलग रंग दे दिया है। ओपेक ने जो ऐलान किया है उसके बाद यूरोपियन यूनियन और जी-7 देशों के बाजार में हलचल बढ़ सकती है। यूरोपियन और जी-7 देश रूस से आने वाले तेल की कीमतों पर अंकुश लगाना चाहते हैं। कोविड लॉकडाउन, कमजोर उपभोक्ता मांग और प्रॉपर्टी मार्केट की वजह से पहले ही दुनिया की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही थी। ओपेक की कटौती की मांग ने कमजोर अर्थव्यवस्था खासतौर पर चीन की, उसे लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं। साल 2023 के अंत तक यह कटौती जारी रहेगी और ओपेक की तरफ से यह इशारा कर दिया गया है।
अपने वादे से मुकरा ओपेक
ओपेक पहले मानता था कि एक बढ़ी हुई मांग के बाद अगले साल तक तेल का उत्पादन बढ़ाया जाएगा। चीन में जीरो कोविड नीति की वजह से लगाए गए लॉकडाउन ने सबसे ज्यादा असर डाला है। इसके अलावा रूस भी कहीं न कहीं इसके लिए जिम्मेदार है। ओपेके के कुछ सदस्य देश जैसे यूएई के पास भरपूर उत्पादन है। कुछ गैर-ओपेक देश जैसे कि अमेरिका भी आपूर्ति को बढ़ा रहे हैं लेकिन इनका झुकाव प्राकृतिक गैस की तरफ ज्यादा है।