इंग्लिश के टीचर द्वारा रिजेक्ट किए गए बिश्वजीत झा ने लिखी है इंग्लिश बुक, जरूरतमंद बच्चों को भी पढ़ाते हैं

दुनिया को कोविड-19 आपदा ने एहसास कराया कि मानव जीवन का कोई भी भरोसा नहीं है. इसके साथ ही इस महामारी ने हमें यह भी सिखाया कि हमारे पास जो है उसमें संतुष्ठ रहना चाहिए और उसका जश्न मनाना चाहिए और अपनी प्राथमिकताओं को तय करके रखना चाहिए. ऐसे में हममें से कुछ लोग अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में एक्सीलेंस पाने के लिए हर दिन प्रयास करते हैं, वहीं बिश्वजीत झा जैसे कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपने गृह राज्य में वंचित बच्चों की मदद करने के लिए एक आकर्षक नौकरी से खुशी-खुशी दूर चले गए. बिश्र्वजीत ने कोरोना के बाद अपने गृह राज्य पश्चिम बंगाल जाने का फैसला किया. बिश्वजीत झा किसी भी व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं जो मेट्रो शहरों में कुछ बड़ा करने का सपना देखता है और फिर अपने गांव के बच्चों की सेवा करने के लिए वापस आता है.

एक मुलाकात ने बदल दी बिश्वजीत की लाइफ

बिश्वजीत की लाइफ बहुत हैपनिंग थी – दिल्ली के एक प्रतिष्ठित मीडिया हाउस में उनका सफल करियर था, एक प्यारी पत्नी और एक प्यारा नवजात बेटा. लेकिन फिर, उसके बाद जो उन्होंने किया वह अकल्पनीय था. ऐसा कहा जाता है कि कुछ लोगों से अनियोजित मुलाकातें हमारे जीवन की दिशा बदल देते हैं. और ऐसा ही बिश्वजीत के साथ हुआ. उन्होंने करीमुल हक से मुलाकात की जिन्होंने उन्हें अपने गृहनगर में वंचित बच्चों के जीवन को रोशन करने की अपने अंदर की आवाज का पालन करने के लिए प्रेरित किया.

चाय बागान में काम करने वाला मजदूर की कहानी

चाय बागान में काम करने वाला मजदूर करीमुल हक अपने क्षेत्र के गरीब लोगों को मुफ्त बाइक एम्बुलेंस सेवा प्रदान करता है. उनकी नेक सेवा ने बिश्वजीत को उन पर एक किताब लिखने के लिए प्रेरित किया – बाइक एम्बुलेंस दादा. यह प्रेरणादायक किताब जल्द ही बॉलीवुड की मेनस्ट्रीम फिल्म के रूप में दिखाई जाएगी.

बिश्वजीत की 2021 की सबसे प्रेरक किताबों में से एक

बिश्वजीत ने कहा, “यह जानकर हैरानी हुई कि मेरी किताब को इंदिरा नूयी के साथ 2021 की सबसे प्रेरक किताबों में से एक के रूप में चुना गया था. मुझे खुशी है कि किताब जल्द ही बॉलीवुड बायोपिक में बदल जाएगी. यह निश्चित रूप से अधिक लोगों को आगे आने और बड़े पैमाने पर समाज की मदद करने के लिए प्रोत्साहित करेगा.”

‘गुड फॉर नथिंग’ कहकर रिजेक्ट कर दिया गया था

बिश्वजीत को एक छात्र के रूप में इंग्लिश ना सिख पाने के कारण उनके स्कूल के शिक्षक द्वारा ‘गुड फॉर नथिंग’ कहकर रिजेक्ट कर दिया गया था, आज वह इंग्लिश में ही दो किताबें लिख चुके हैं. पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के राजगंज के रहने वाले बिश्वजीत ने वंचित बच्चों को सशक्त और सुसज्जित करने के लिए अंग्रेजी भाषा सीखने के लिए कई केंद्र स्थापित किए हैं.

हर बच्चे को बुनियादी शिक्षा का अधिकार है

बिश्वजीत ने विस्तार से बताया, “मैं वास्तव में उन बच्चों के साथ सहानुभूति रखता हूं, जिनकी क्वालिटी एजुकेशन तक पहुंच नहीं है. मेरा मानना है कि हर बच्चे को बुनियादी शिक्षा का अधिकार है. शिक्षा इन बच्चों के साथ-साथ उनके परिवारों के जीवन को भी रोशन कर सकती है.”

50 लड़कियों को उनकी शिक्षा जारी रखने में मदद कर रहे हैं

इससे पहले, बिश्वजीत ने अपने गांव में एक फुटबॉल एकेडमी स्थापित की थी, जिसने मनोज मोहम्मद जैसी राष्ट्रीय प्रतिभाएं दी हैं, जो वर्तमान में आईएसएल चैंपियन में हैदराबाद एफसी टीम के लिए खेल रहे हैं, और कल्पना राय, जिन्होंने महिला फुटबॉल में अंडर -19 स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया. अपने श्रमसाध्य प्रयासों और अपनी पत्नी डॉ. संजुक्ता साहा के अथक सहयोग से बिश्वजीत 50 लड़कियों को उनकी शिक्षा जारी रखने में मदद कर रहे हैं.

बिश्वजीत के इस काम में कई लोग शामिल हुए

बिश्वजीत के इस काम में कई लोग शामिल हो गए हैं और बड़ी संख्या में छोटे बच्चों को अपना भाग्य लिखने में मदद कर रहे हैं.

Sunil Kumar Dhangadamajhi

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