रिपोर्ट के मुताबिक रूसी नौसेना ने सेवस्तोपोल बंदरगाह के एंट्री गेट पर डॉल्फिन्स को रखा है। सेवस्तोपोल बंदरगाह क्रीमिया पेनिनसुला के दक्षिणी छोर पर है, जिस पर रूस ने 2004 में कब्जा कर लिया था। USNI के सैटेलाइट इमेजरी के एनालिसिस के मुताबिक, फरवरी में यूक्रेन पर अटैक की शुरुआत में रूस ने अपने नेवल बेस पर डॉल्फिन्स की दो बटालियन्स को शिफ्ट किया था।
जानकारी के मुताबिक, मिलिट्री द्वारा ट्रेन की गईं ये डॉल्फिन्स रूसी नेवल बेस के एंट्री पॉइंट की निगरानी करती हैं। बता दें कि इस पॉइंट से कोई भी जहाज, पनडुब्बी या युद्धपोत रूस में प्रवेश कर सकता है। साथ ही यहां रूस की परमाणु पनडुब्बियां और जंगी जहाज हर पल तैनात रहते हैं, जिस वजह से डॉल्फिन्स की तैनाती और भी जरूरी हो जाती है।
सोवियत संघ के समय से ही रूसी सेना डॉल्फिन्स को ट्रेनिंग दे रही है। इसके लिए कोल्ड वॉर के दौरान तकनीकें विकसित की गई थीं। डॉल्फिन्स पानी के अंदर दुश्मन टारगेट के साउंड और रेंज को डिटेक्ट कर सकती हैं। रूसी सेना ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसकी मदद से डॉल्फिन्स की हरकतें सिग्नल में कन्वर्ट हो जाती हैं और सेना को पता चल जाता है।
डॉल्फिन्स को सिर्फ रूसी सेना ही नहीं, बल्कि अमेरिका और यूक्रेन जैसे देशों की सेना भी ट्रेन करती है। सोवियत संघ के दौर में यूक्रेन भी इन मछलियों को सेवस्तोपोल के पास मिलिट्री ट्रेनिंग देता था।
2012 में यूक्रेन ने इस प्रोग्राम को बंद कर दिया था, जिसके बाद 2014 में क्रीमिया पर कब्जे के वक्त यूक्रेन की डॉल्फिन्स भी रूस के हाथ लग गई थीं। बाद में यूक्रेन ने कई बार रूस से अपनी डॉल्फिन्स वापस मांगीं, लेकिन उसे कामयाबी हासिल नहीं हुई। वहीं अमेरिका भी डॉल्फिन्स को मिलिट्री ट्रेनिंग देने में पीछे नहीं है। सरकार ने डॉल्फिन्स और समुद्री घोड़ों को ट्रेन करने लिए अब तक करीब 28 मिलियन डॉलर खर्च किए हैं।
रूस ने सीरियन वॉर के वक्त टर्तुस और सीरिया में बने अपने नेवल बेस पर डॉल्फिन्स का इस्तेमाल किया था। 2018 में रिलीज हुई सैटेलाइट इमेजरी में ये खुलासा हुआ था कि रूस ने सीरियन वॉर के वक्त टर्तुस और सीरिया में बने अपने नेवल बेस पर डॉल्फिन्स का इस्तेमाल किया था।