लखनऊ : विधानसभा चुनाव नजदीक आता देख अखिलेश यादव भी अब अपने पिता मुलायम सिंह के सियासी फॉर्मूले को आजमाने की कोशिशों में हैं.
यूपी की पिछड़ी जातियों में राजनीति प्रतिनिधित्व के रूप में यादव जातियों की बहुलता है. पिछड़ी जातियों के सामाजिक-राजनीतिक स्वरूप का अध्ययन करने वाले बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के पूर्व प्रोफेसर डॉ. अजीत कुमार बताते हैं, “पिछड़ी जातियों में सबसे ज्यादा फायदा इनमें संख्याबल में सबसे बड़ी यादव जाति को ही हुआ था. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में गैर यादव जातियां पिछड़ेपन को मुद्दा बनाकर भाजपा के पक्ष में लामबंद हुई थीं जिससे पिछड़ी राजनीति में एक उध्र्वाधर विभाजन स्पष्ट दिखने लगा है. सपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती गैर यादव पिछड़ी जातियों को अपने साथ जोड़ने की है.”
गैर-यादव पिछड़ी जातियों को सपा के साथ जोड़ने की रणनीति के तहत अखिलेश यादव ने पार्टी के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ की कार्यकारिणी में गैर यादव पिछड़ी जातियों को बड़ी संख्या में प्रतिनिधित्व देने की योजना तैयार की है. इसके लिए सपा सुप्रीमो ने पार्टी के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के नवनियुक्त अध्यक्ष राजपाल कश्यप को जरूरी निर्देश भी दिए हैं. इसी फार्मूले को जिला, ब्लॉक और विधानसभा स्तर पर बनने वाली पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ की कमेटी में भी लागू करने का निर्देश अखिलेश यादव ने दिया है.
गैर यादव पिछड़ी जातियों में कुर्मी के अलावा एक जैसी सामाजिक संरचना वाली जातियां, सैनी, शाक्य, कुशवाहा और मौर्य हैं. पिछड़ी जातियों में इनकी सम्मिलित हिस्सेदारी 14 प्रतिशत से कुछ अधिक है. पश्चिमी यूपी की कुशवाहा, शाक्य, मौर्य और सैनी जातियों में प्रभाव रखने वाले महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य के साथ 24 अगस्त को अखिलेश यादव ने लखनऊ में एक विस्तृत बैठक की है. केशव देव मौर्य बताते हैं, “महान दल वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ेगी.” हालांकि सपा की सबसे बड़ी कमजोरी पार्टी के पास यादव जाति के अलावा दूसरी पिछड़ी जाति का कोई प्रभावशाली नेता का न होना है.
लखनऊ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजेश्वर कुमार बताते हैं, “ सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के समय पार्टी के पास बेनी प्रसाद वर्मा जैसे नेता थे जो पिछड़ी जाति कुर्मी पर मजबूत पकड़ रखते थे. सपा ने नरेश उत्तम को सपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है लेकिन वह पिछड़ी जाति में प्रभाव रख पाने में कामयाब नहीं हुए हैं.”
इसी के मद्देनजर अखिलेश ने 25 जुलाई को पूर्व सांसद फूलन देवी की पुण्यतिथि पर सिर्फ श्रद्धांजलि ही अर्पित नहीं की बल्कि उनके जीवन पर आधारित एक वृत्तचित्र के प्रोमो को साझा कर अति पिछड़ा निषाद समुदाय को राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है. इतना ही नहीं सपा कार्यकर्ताओं ने प्रदेश के विभिन्न जिलों में फूलन देवी को श्रद्धांजलि अर्पित की और सामंतवादियों के खिलाफ उनके संघर्ष की सराहना किया. सपा प्रमुख अखिलेश ने 25 जुलाई को ट्विटर पर फूलन देवी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देते हुए एक बयान पोस्ट किया और उनके जीवन पर आधारित एक फिल्म का पोस्टर भी साझा किया.
इसके बाद उसी दिन अखिलेश ने शाम को ईरानी फिल्ममेकर की फूलन देवी पर बनी डॉक्यूमेंट्री का प्रोमो ट्वीट किया था. प्रोमो में फूलन को ऐसे महिला के तौर पर दिखाया गया है जो अति पिछड़ी जाति में पैदा हुई थी और जिसे बिना किसी अपराध के मानसिक और शारीरिक पीड़ा झेलनी पड़ी. इस डॉक्यूमेंट्री में बहमई हत्याकांड को फूलन के प्रतिशोध के रूप में सही ठहराया गया है. यूपी में वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद अतिपिछड़ी जातियों में राजभर और निषाद जातियां भी अपने स्वतंत्र राजनीतिक अस्तित्व के लिए संघर्ष करती दिखाई दे रही हैं. इसी क्रम में वर्ष 2018 में गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद ने अपने बेटे प्रवीन निषाद को सपा से चुनाव लड़वाकर सांसद बनवाया. लोकसभा चुनाव के पहले यह सपा को छोड़कर भाजपा से जुड़ गए. पिछले लोकसभा चुनाव भाजपा से टिकट पाकर प्रवीन संतकबीर नगर से सांसद बने. अब फूलन देवी के जरिए सपा निषाद जाति को एक सकारात्मक संदेश देने की कोशिश कर रही है.
पूर्वांचल की महत्वपूर्ण पिछड़ी जाति राजभर का साथ पाने के लिए सपा सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के संपर्क में है. वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर लड़ने के बाद ओमप्रकाश राजभर भाजपा सरकार में मंत्री बने थे. लोकसभा चुनाव के दौरान बगावती तेवर दिखाने के बाद राजभर मंत्री पद से हटाए गए और भाजपा ने भी इनसे किनारा कर लिया. अब ओमप्रकाश राजभर के जरिए सपा पूर्वांचल में राजभर जाति को अपने साथ लाने की कोशिश में है.
वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती उन गैर यादव पिछड़ी जातियों को सपा से दोबारा जोड़ने की है जो समय के साथ पार्टी से दूर चली गई हैं. अगर अखिलेश ऐसा कर सके तो “बाइस में बायसकिल” का उनका नारा सबसे तेज गूंजता सुनाई पड़ेगा.