Indian in US Politics: अमेरिकी सियासत में तेजी से ऊंचाई छू रहे भारतवंशी, 2013 में एक सांसद था और अब पांच, राज्यों में भी बढ़ी नुमाइंदगी – leader of indian origin is rapidly rising in american politics an mp in 2013 and now has increased representation in five states

वॉशिंगटन: अमेरिका की सियासत में भारतवंशी नेता सीढ़ी दर सीढ़ी तेजी से ऊंचाइयां छू रहे हैं। सात समंदर पार इस देश में प्रवासियों के सबसे बड़े समूह में होने के बावजूद साल 2013 में अमेरिकी संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में भारतवंशी सांसद सिर्फ एक था। राज्यों की विधायिकाओं में बमुश्किल तादाद 10 थी। अमेरिकी संसद के उच्च सदन सेनेट में तो कोई भी नहीं था। लेकिन 10 साल बाद अमेरिकी संसद में पांच भारतवंशी सांसद हैं। राज्यों में इनकी तादाद बढ़कर 50 हो चुकी है। देश की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस भारतीय मूल की हैं। साल 2016 से लगातार तीसरी बार है जब राष्ट्रपति चुनाव में कोई भारतवंशी दावेदारी ठोक रहा है। इस बार रिपब्लिकन उम्मीदवारों की रेस में निकी हेली हैं, तो उन्हें चुनौती देने के लिए भारतवंशी विवेक रामास्वामी भी इस दौड़ में हैं।

भारतवंशियों के समर्थक समूह ‘इंपैक्ट’ में इग्जेक्युटिव डायरेक्टर नील मखीजा कहते हैं कि प्रशासनिक पदों में प्रवासियों को देखें तो भारतीय मूल के लोग ‘कुछ नहीं’ से काफी हद तक समानता की ओर बढ़ रहे हैं। वैसे ज्यादातर भारतवंशी वोटर डेमोक्रेट समर्थक हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि निकी हेली कितना समर्थन जुटा पाती हैं। पहले जब किसी भारतवंशी ने रिपब्लिकन के रूप में चुनाव लड़ा तो शायद ही कभी अपने परिवार के इतिहास के बारे में ज्यादा बात की हो, लेकिन निकी हेली अपनी भारतीय खासकर पंजाबी पृष्ठभूमि पर बहुत जोर दे रही हैं। यह भी गौर करने की बात है कि अमेरिका और कनाडा में बहुत से ट्रांसपोर्टर और ट्रक ड्राइवर इसी पृष्ठभूमि से हैं।

क्या है बढ़ते प्रभाव की वजह

जानकार, विश्लेषक और अमेरिकी संसद में चार भारतवंशी सांसद अमेरिकी राजनीति में भारतवंशियों के बढ़ते प्रभाव की वजह भी बताते हैं। उनके मुताबिक, रईसी, शिक्षा का ऊंचा स्तर और फर्राटेदार अंग्रेजी जैसे कई कारक है, जिन्होंने भारतीय मूल की दूसरी और तीसरी पीढ़ी के लिए सियासत के दरवाजे खोले हैं। भारतवंशियों के लिए समर्थन जुटाने वाले समूह ‘इंपैक्ट’ और ‘AAPI विक्ट्री फंड’ ने भी भारतीय मूल के लोगों की पार्टियों में एंट्री, उनके लिए समर्थन जुटाने और बड़े नेताओं का इन भारतवंशियों की ओर ध्यान खींचने में बड़ी मदद की है।

इन समूहों का असर खासकर जॉर्जिया, पेंन्सिलवेनिया और टेक्सस जैसे राज्यों में ज्यादा रहा, जहां भारतवंशियों की तादाद काफी है। इंपैक्ट के सह-संस्थापक और कैंजस के पूर्व विधायक राज गोयल कहते हैं कि ये समर्थक समूह असल में स्थानीय निकायों, राज्य विधायिकाओं और संसद की रेस में एकसाथ मिलकर काम कर रहे हैं। गोयल कहते हैं कि जब मैं पहली बार डेमोक्रेट के रूप में चुनाव लड़ी तो रिपब्लिकन महिला प्रत्याशी ने पूछा कि ‘रॉड डॉयल’ कौन है? यह मेरे लिए अकल्पनीय था। लेकिन आज ज्यादातर वोटर भारतवंशी नेताओं को पहचानते हैं। उन्हें टीवी पर देखते हैं, क्लासरूम में पढ़ते हैं और उन्हें बड़ी-बड़ी कंपनियां चलाते देख रहे हैं।

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भारतवंशियों की सियासत में 2016 निर्णायक रहा

साल 2016 में पहली बार भारतवंशी नेता और लुइजियाना के गवर्नर बॉबी जिंदल राष्ट्रपति पद की रेस में उतरे। उसी साल प्रमिला जयपाल वॉशिंगटन से, रो खन्ना कैलिफॉर्निया से और राजा कृष्णमूर्ति इलिनॉय से सांसद बनकर प्रतिनिधि सभा पहुंचे। इस तरह अमेरिकी संसद में भारतीयों की तादाद एक से बढ़कर चार हुई। पहली बार 2012 में कैलिफॉर्निया से रिपब्लिकन नेता और भारतवंशी नेता एमी बेरा संसद पहुंचे थे। इसी साल कमला हैरिस सेनेट पहुंचीं, जो अमेरिकी संसद के इस उच्च सदन में पहुंचने वाली पहली भारतवंशी नेता थीं।

तब से राज्य विधानसभाओं में भारतवंशियों की संख्या तीन गुनी हो चुकी है। खास बात यह कि वे उन इलाकों से चुने गए हैं, जो भारतवंशियों का गढ़ नहीं हैं। जैसे प्रमिला जयपाल सिएटल स्थित उस जिले से चुनी गईं, जो श्वेत बहुल है। श्री थानेदार डेट्रॉयट में उस जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहां अश्वेतों की तादाद ज्यादा है। इस समय संसद और विधायिकाओं में चुने गए लगभग सभी भारतवंशी डेमोक्रेट हैं। निकी हेली की उम्मीदवारी केस स्टडी हो सकती है, क्योंकि वह रिपब्लिकन हैं और भारत के पंजाब से आती हैं, जहां से अमेरिका और कनाडा में बहुत से ट्रक ड्राइवर हैं।

Sunil Kumar Dhangadamajhi

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