महंगा डीजल, 170 अरब का टैक्स बम… पाकिस्तान के लिए IMF की ये हैं जालिम शर्तें, शहबाज माने तो अवाम की खैर नहीं!

इस्लामाबाद : पाकिस्तान और आईएमएफ के बीच करीब 10 दिनों तक बातचीत होती रही। लेकिन वार्ता किसी नतीजे पर नहीं पहुंची। वार्ता एक बार फिर ऑनलाइन रूप से शुरू हुई है क्योंकि 1.1 बिलियन डॉलर की महत्वपूर्ण डील अभी भी अधर में लटकी हुई है। पाकिस्तान ने कड़ी बातचीत के बाद 2019 में आईएमएफ से 6 बिलियन डॉलर का बेलआउट पैकेज हासिल किया था। लेकिन 1.1 अरब डॉलर का भुगतान दिसंबर से रुका हुआ है और देश की हालत दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है।

पाकिस्तान सरकार की मोनेटरी पॉलिसी और आईएमएफ की शर्तों के बीच कई मतभेद हैं जिसके बोझ तले अवाम दब रही है। उधारदाता पाकिस्तान को और अधिक पैसे देने से पहले देश में कुछ संरचनात्मक सुधार देखना चाहते हैं। पिछले शुक्रवार को आईएमएफ प्रमुखों के पाकिस्तान छोड़ने के बाद देश के वित्त मंत्री इशाक डार ने एक मीडिया ब्रीफिंग आयोजित की। उन्होंने बताया, ‘प्रधानमंत्री ने कहा है कि हम प्रतिबद्ध हैं… हमारी टीमों के बीच जो भी सहमति बनी है, हम उसे लागू करेंगे।’ उन्होंने बताया था कि सरकार को को आईएमएफ से मेमोरेंडम ऑफ इकोनॉमिक एंड फाइनेंशियल पॉलिसीज (एमईएफपी) मिला है।

MEFP एक अहम दस्तावेज होता है जिनमें वे सभी शर्तें, कदम, नीतिगत उपाय शामिल होते हैं जिनके आधार पर वार्ता में शामिल दोनों पक्ष स्टाफ-लेवल एग्रीमेंट की घोषणा करते हैं। एमईएफपी में शामिल की गईं कुछ नीतियां हैं- कैबिनेट से मंजूरी के बाद 170 अरब पाकिस्तानी रुपए का टैक्स लागू करना, डीजल पर टैक्स को बढ़ाना, ऊर्जा सुधारों को लागू करना, गैस और ऊर्जा क्षेत्रों में सब्सिडी को कम करना और यह सुनिश्चित करना कि गैस क्षेत्र के सर्कुलर कर्ज में वृद्धि शून्य हो।

आईएमएफ की ये शर्तें जनता पर अतिरिक्त बोझ बढ़ा सकती हैं जो पहले ही कई मुसीबतों से जूझ रही है। इसके अलावा अगर आईएमएफ और पाकिस्तान एक समझौते पर पहुंच भी गए, तब भी फंड जारी होने में कई हफ्ते, संभवतः महीनों का समय लगेगा। लेकिन पाकिस्तान के पास ज्यादा समय नहीं बचा है क्योंकि मुल्क के पास अब सिर्फ कुछ ही हफ्तों के आयात के लिए धन बचा है। पाकिस्तान के वर्तमान संकट के लिए बाहरी कारकों के बजाय घरेलू अस्थिरता जिम्मेदार है।

Sunil Kumar Dhangadamajhi

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