Dhiraj Sahu IT Raid Case: झारखंड में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद धीरज साहू और उनके सम्बंधित स्थानों आयकर विभाग (IT Department) की छापेमारी चल रही है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अभी तक 300 करोड़ रुपये की गिनती की जा चुकी है. छापेमारी में 30 अलमारियों में नोटों को भरकर रखा गया था. इन नोटों की गिनती के लिए मशीनों की भी आवश्यकता पड़ी. दावा किया जा रहा है कि नोट की गिनती करते-करते मशीन भी खराब हो गयी. आयकर विभाग की 40 सदस्यों की टीम ने बुधवार की सुबह से ही ओडिशा के बौध, बोलांगीर, रायगढ़ा, और संबलपुर, झारखंड के रांची-लोहरदगा और कोलकाता में समूह में छापेमारी की गई. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आयकर विभाग, ईडी या सीबीआई के द्वारा छापेमारी में जब्त रुपये का क्या होता है. क्या सब पैसा सरकार के खजाने में जमा हो जाता है? फिर कैश तो ठीक है घर-संपत्ति या गहनों का सरकार के द्वारा क्या किया जाता है? आइये इस खबर में जानते हैं.
2019 में लागू हुआ था प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉड्रिंग एक्ट
केंद्र सरकार के द्वारा साल 2019 में प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉड्रिंग एक्ट (PMLA) को लागू किया गया था. इसमें विदेश में गलत तरीके से पैसा कमाने या गलत तरीके से विदेश में पैसा भेजने या हलावा से जुड़े मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) के द्वारा कार्रवाई की जाती है. इसके अलावा आयकर विभाग के द्वारा आय से अधिक संपत्ति के शक पर नोटिस देने और छापेमारी का भी अधिकार है. सेंट्रल ब्योरो ऑफ इंनेस्टिगेशन (CBI) के द्वारा भी छापेमारी के दौरान अवैध संपत्ति को जब्त करने का पूरा अधिकार होता है. इसके अलावा, चुनाव के दौरान आचार संहिता लागू हो जाने पर चुनाव आयोग भी नियम से ज्यादा कैश रखने पर उसे जब्त कर सकती है. एक आंकड़े के अनुसार, 2019 के बाद से 1.04 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा संपत्ति अटैच की जा चुकी है. जबकि सैकड़ों किलोग्राम सोने-चांदी के आभूषण भी पेमारी में बरामद किए जा चुके हैं. साथ ही, 400 लोगों को गिरफ्तर भी किया जा चूका है. हालांकि, आय से अधिक संपत्ति के मामले में अभी तक केवल 25 लोगों को ही दोषी ठहराया गया है.
जब्त रुपये का क्या होता है
जांच या छापेमारी के दौरान अवैध संपत्ति, कैश या गहनों की बरामदगी को एजेंसी जब्त कर सकती है. हालांकि, ऐजेंसी के पास उसे खर्च करने का अधिकार नहीं होता है. जांच एजेंसियों के द्वारा जब्त किये गए रुपये, संपत्ति या गहनों के बारे में अभियुक्त से सबसे पहले पूछताछ की जाती है. इसमें अभियुक्त को ये प्रूफ करना होता है कि उसके पास से बरामद रुपयों का श्रोत क्या है. उसने इसके लिए सरकार को टैक्स दिया है आदि. इसके आधार पर केस होता है. कोर्ट में दोष सिद्ध होने के बाद, केंद्रीय एजेंसियां गहने, गाड़ियां, घर, फ्लैट और बंगले जैसे अचल संपत्ति को नीलाम कर सकती है. इन मामलों के कारण किसी अन्य पक्ष को किसी तरह का नुकसान हुआ हो या किसी तरह से प्रभावित हुए हो, तो उसके घाटे की पूर्ति इन्हीं नीलामी में मिले पैसों से की जाती है.
आरोप सिद्ध नहीं हो तो..
जांच एजेंसी पर नियम के तहत दबाव होता है कि छह महीने के भीतर उसे आरोप को सिद्ध करना होता है. कोर्ट में आरोप सिद्ध होने पर जब्ती का माल सरकार के खाते में चला जाता है. अगर आरोप सिद्ध नहीं होता है तो संपत्ति वापस उस व्यक्ति को दे दी जाती है, जिससे जब्त की गई थी. कुछ मामलों में कोर्ट के द्वारा आरोपी को जुर्माना लगाकर संपत्ति, पैसा या जब्ती का माल वापस किया जाता है. इसमें एक बात और महत्वपूर्ण है. अगर मामला केंद्र सरकार से जुड़ा होता है तो पैसे केंद्र सरकार के खाते में जमा होता है. अगर, मामला राज्य सरकार से जुड़ा होता है तो राज्य सरकार के खाते में जमा होता है.