अब्राहम लिंकन ने अपने संघर्ष से यह साबित कर दिया कि कड़ी मेहनत से विपरीत परिस्थितियों को मात देकर बुलंदियों पर पहुंचा जा सकता है. लिंकन का बचपन काफी गरीबी में गुजरा. लिंकन का परिवार इतना गरीब था कि सभी लोग एक लकड़ी के छोटे से घर में रहते थे. जिस जमीन पर उनका घर था, उसको लेकर भी विवाद हुआ और पूरे परिवार को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी. बचपन में ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था, जिसके बाद लिंकन की देखभाल उनकी बड़ी बहन ने की. उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि स्कूल जा कर पढ़ सकें. उन्होंने हार नहीं मानी और मजदूरी के साथ स्वअध्ययन करना जारी रखा.
पढ़ने का जुनून
लिंकन को बचपन से ही पढ़ने का जुनून था. जब भी उन्हें समय मिलता वह मांग कर किताबें पढ़ते थे. एक बार लिंकन को पता चला कि उनके शिक्षक के पास अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन की जीवनी है. उन्होंने अपने शिक्षक से काफी मिन्नतें की कि उस पुस्तक को पढ़कर वह लौटा देंगे. शिक्षक ने वह किताब लिंकन को पढ़ने के लिए दे दी. घर में किताब पढ़ते हुए अचानक लिंकन की आंख लग गयी और रात को बारिश की बौछार से किताब भीग कर खराब हो गयी. किताब के भीगने से उन्हें बहुत दुख हुआ. जब लिंकन दुखी मन से उस किताब को लेकर अपने शिक्षक के पास पहुंचे और उनको किताब लौटाते हुए कहा कि किताब तो खराब हो गयी है और इसकी कीमत चुकाने के पैसे मेरे पास नहीं हैं. इसके बदले में आप मुझे जो भी काम करने को देंगे, वह करके मैं पैसे चुका दूंगा. शिक्षक को किताब देखकर तो गुस्सा आया था, लेकिन लिंकन के प्रस्ताव से उनका गुस्सा जाता रहा. शिक्षक ने कहा कि तीन दिन तुम मेरे खेतों में काम करो और उसके बाद यह किताब तुम्हारी हो जायेगी. लिंकन ने उनके खेत में लगन से तीन दिन तक काम किया और उस पुस्तक को पा लिया. पुस्तक पाते ही अब्राहम लिंकन ने ठान लिया कि वह भी बड़े होकर जॉर्ज वॉशिंगटन की तरह बनेंगे. आगे चलकर उनका यह स्वप्न पूरा भी हुआ.
बात करने से बनती है बात
दो भाइयों में संपत्ति को लेकर मनमुटाव हो गया था. मामला न्यायालय तक पहुंच गया. राष्ट्रपति बनने से पहले लिंकन वकालत किया करते थे. एक भाई अब्राहम लिंकन के पास पहुंचा. अपने केस की पैरवी को लेकर उनसे सलाह मांगी. उन्होंने समझाया कि तुम दोनों भाई हो, आपस में बातचीत करके मामले को सुलझा क्यों नहीं लेते. भाई ने बताया कि हम दोनों की तो बातचीत महीनों से बंद है. यह सुन लिंकन ने दूसरे भाई को भी बुलवा लिया और दोनों को समझाते हुए कहा कि यह संपत्ति कभी किसी के साथ नहीं जाती और तुम दोनों भाई इसकी वजह से एक-दूसरे के दुश्मन बन जाने को तैयार हो? यह मानवता की भावना के विरुद्ध है. दोनों चुपचाप लिंकन की बात सुन रहे थे. लिंकन उस कमरे में दोनों को अकेला छोड़ कर बाहर चले गये. उन्होंने बाहर से आवाज देकर कहा- अपने बचपन के दिनों को याद करो और आपस में संवाद करो. थोड़ी देर बाद दोनों भाई एक-दूसरे से क्षमा मांगते हुए बाहर निकले और केस वापस लेकर आपस में सुलह कर लिया.
बच्चे की बात का महत्व
लिंकन के अमेरिका के राष्ट्रपति चुने जाने से कुछ हफ्ते पहले ग्रेस बीडल नाम की एक बच्ची ने लिंकन को एक पत्र भेजा. ग्रेस ने लिखा कि महोदय, मैं 11 वर्ष की एक बच्ची हूं. आप हम सबके प्यारे नेता हैं. मैं चाहती हूं कि आप हमारे राष्ट्रपति बनें. आज मैंने आपका चित्र देखा. उसमें आप बहुत दुबले लगते हैं. मेरा सुझाव है कि आप दाढ़ी रख लें. दाढ़ी से आप बहुत अच्छे लगेंगे. तब और अधिक लोग आपको वोट देंगे और आप हमारे देश के राष्ट्रपति बन जायेंगे. क्या आपकी कोई बच्ची मेरी उम्र की है? हो तो उसे मेरा नमस्ते कहें और पत्र लिखने को कहें. पत्र मिलते ही लिंकन ने ग्रेस को पत्र लिख कर उसको धन्यवाद कहा, लेकिन दाढ़ी बढ़ाने का कोई वादा नहीं किया. एक दिन चुनावी प्रचार के क्रम में लिंकन की एक सभा ग्रेस के गांव में भी हुई. भाषण के बाद उन्होंने कहा कि इस गांव में एक नन्ही बच्ची ग्रेस रहती है. मैं उससे मिलना चाहता हूं. यह सुन ग्रेस बहुत खुश हुई और लिंकन के पास पहुंची. लिंकन ने ग्रेस से कहा कि यह देखो, मैंने तुम्हारा सुझाव मान लिया और दाढ़ी रख ली. नन्ही-सी बच्ची की बात को भी महत्व देने वाले लिंकन चुनाव जीत गये और अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति बने.
…तो गरीब कैसे हुए
लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति बन चुके थे. एक दिन उनके पास एक युवक आया, जो बेकारी से तंग आ चुका था और भीख मांगने के बारे में सोच रहा था. उसने लिंकन से कहा कि मैं बहुत गरीब हूं. ईश्वर ने मुझे कुछ भी नहीं दिया है, कृपया दया करें. लिंकन ने उस युवक को ऊपर से नीचे तक देखा. फिर कहा- ठीक है, मैं तुम्हें दो हजार डॉलर दे देता हूं, तुम अपने दोनों पैर मुझे दे दो. युवक परेशान होकर बोला- मैं पैर तो नहीं दे सकता, क्योंकि फिर मैं चलूंगा कैसे? इसके बाद लिंकन बोले- अच्छा पैर नहीं दे सकते, तो कोई बात नहीं दोनों हाथ मुझे दे दो. मैं तुम्हें 10 हजार डॉलर दे देता हूं. इसपर युवक बोला- सर, कोई मुझे 50 हजार डॉलर भी दे तो मैं उसे हाथ नहीं दे सकता. लिंकन ने हंस कर कहा- चलो, अपनी आंखें ही दे दो. मैं अभी तुम्हें एक लाख डॉलर नकद दिलवा देता हूं. इस पर युवक ने कहा- आप कैसी बात करते हैं? कोई अपने अंग भला कैसे दे सकता है? इस पर लिंकन ने ठहाका लगाया और बोले- देखो, जब ईश्वर ने तुम्हें इतनी कीमती चीजें दी हैं तो तुम गरीब कैसे हुए? क्या तुम्हें यह कहना शोभा देता है कि मेरे पास कुछ नहीं है. जाओ, मेहनत-मजदूरी करो. मैं खुद भी मजदूरी कर यहां तक पहुंचा हूं. हाथ भीख के लिए नहीं, काम के लिए उठाओ.
अन्य रोचक बातें
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अब्राहम लिंकन का जन्म अमेरिका के केंटकी प्रांत के एक गांव में हुआ था.
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वर्ष 1860 में लिंकन ने अमेरिका के राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने में सफलता हासिल की. उनके प्रयासों के फलस्वरूप ही अमेरिका में दास प्रथा को रोकने में सफलता मिली.
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अब्राहम लिंकन लोकतंत्र के हिमायती एवं सभी को समान अधिकार दिलाने के समर्थक थे. उन्होंने कहा था कि लोकतंत्र ‘जनता की, जनता के द्वारा और जनता के लिए बनायी गयी शासन व्यवस्था है.’
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उनका मानना था कि किसी भी कार्य को करने से पहले हमें उस कार्य के प्रति मजबूत इरादों वाला और कुशल बनना चाहिए ताकि कठिन कार्य को भी सरलता से किया जा सके. इसी संदर्भ में उन्होंने कहा था कि ‘यदि मुझे एक पेड़ काटने के लिये छह घंटे दिये जाएं तो मैं पहले चार घंटे अपनी कुल्हाड़ी की धार तेज करने में लगाऊंगा.’