अंधेरे में भी होती है रोशनी
साफ़ दिखती है सड़क ।
दिल की जमीं पर
बोया जाता है ख्वाबों की फ़सल ।
सुने नहीं हो क्या
पथ तो होता है
पर अपनी इच्छा मुताबिक
यात्रा नहीं कर सकते ।
रोशनी में अंधकार
घनघोर अंधकार
अधमरे अभिलाष सारे
दिन सभी
तेज धारा में ।
देखो देखो
दिन सभी गुम हो रहे हैं
चले गए
कोई किधर
आओ देखो
अंधेरे में
कितनी रोशनी ।
✍🏾मूल ओड़िया: प्रफुल्ल चंद्र पाढ़ी
कोलनरा,रायगडा जिला
मो_8917324525
अनुवाद: ज्योति शंकर पण्डा
शरत, मयूरभंज