बेसन से बने मीठे-नमकीन व्यंजन

दालों का व्यापार करने वाले एक दोस्त ने हाल ही में यह खुलासा किया कि भारत में सबसे अधिक बिकने वाली दाल मास,अरहर या मूंग नहीं, बल्कि चने की दाल है. इसका कारण सिर्फ यह नहीं कि यह दूसरी दालों की तुलना में सस्ती है, बल्कि यह भी कि इसे देश के सभी सूबों में पैदा किया जाता है और इसे अलग-अलग तरह से पकाया जाता है. चने की दाल की बात फिर कभी होगी, क्योंकि इस वक्त हमारा ध्यान अटका हुआ है चने से बनने वाले बेसन पर. बेसन के जायके अनेक हैं. अधिकांश नमकीन, तो कुछ अनोखे मीठे. बेसन से दही या छाछ के मिश्रण से तरह-तरह की कढ़ी बनाई जाती है. कहीं गाढ़ी, कहीं पतली, कहीं पकौड़ी वाली तो कहीं आलू-मूली, प्याज या मेथी वाली. राजस्थान में कढ़ीनुमा खाटा बनाते हैं, तो पड़ोसी गुजरात में लहसुनी और मिठास का पुट लिये कढ़ी का आनंद ले सकते हैं. महाराष्ट्र में पतली कढ़ी को दाल या रोटी के साथ नहीं खाते, बल्कि खाने के बीच में इसके घूंट लेते रहते हैं. मानो जुबान को अगले स्वाद के लिये तैयार कर रहे हो. उत्तराखंड के गांवों में इसे झोली या पल्यो कहते हैं. बेसन की सूखी और तरी वाली सब्जियां उस इलाके में बहुत काम आती है जहां ताजा सब्जियां अभी हाल तक सुलभ नहीं होती थीं.

बेसन से ही सेव झारी जाती है, गाठिया और भुजिया तैयार होती है. पकौड़े, भजिया, मिर्ची बड़े आदि की कल्पना भी बेसन के अभाव में नहीं की जा सकती. पतौड़ रिकवच के बीच में मसालेदार बेसन की पीठी भरी जाती है, और इसी काम के लिये कचौड़ी में भी इसे इस्तेमाल किया जाता है, दाल की पीठी के विकल्प में. उत्तर भारत में नाश्ते के लिये बेसन के चिले बहुत लोकप्रिय थे, जिन्हें देसी निरामिष ऑमलेट का नाम दिया जाता था. आजकल शादी-ब्याह की दावतों में चाट वाले काउंटर पर इनके दर्शन ज्यादा होते हैं, जहां इन्हें पनीर भर कर स्पेशल बनाया जाता है. कुछ लोगों को बेसन के चिले पचाने में कठिन लगते हैं, मगर यदि इन चिलो को दही का घोल बनाने के बाद हल्का खमीर उठने का मौका दिया जाये, तो यह काफी हल्के होते हैं. इन्हें सेहत के लिये और भी मुफीद बनाना हो, तो आप इसमें टमाटर-प्याज हरी मिर्च के साथ या इनकी जगह मनपसंद और सुलभ हरी सब्जियां भी मिला सकते हैं.

बेसन की रोटी भी बनायी जाती है, जो अवध के देहाती इलाके में अमिया की चटनी के साथ बड़े शौक से खायी जाती है. इसके साथ एक दिलचस्प कहानी जुड़ी है – अफगान सिपहसालार शेरशाह सूरी ने जब हुमायूं को दिल्ली से खदेड़ दिया, तब उसने अफगानिस्तान और ईरान में शरण ली. दर-बदर भटकते किसी गांव में उसने बेसन की रोटी खायी, जो उसे बहुत पसंद आयी. दोबारा तख्तनशीन होने के बाद उसने इसे शाही दस्तरख्वान में शामिल कर लिया. आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की विदाई दावत में इसी हुमायुंनी रोटी का उल्लेख है.

घरों पर बनाये जाने वाले लड्डुओं में बेसन के लड्डू सबसे आम हैं, जो हनुमान जी का प्रसाद समझे जाते हैं. आज इनका स्थान बूंदी के लड्डुओं ने ले लिया है. बड़े आकार की बूंदी को हलवाई से बिना झंझट के खरीदा जा सकता है. बेसन की मिठाइयों में सादे छोर पर बेसन की बर्फी है, तो राजसी ठाठ वाला मैसूर पाक. वैष्णव मंदिरों के 56 भोग में बेसन से बने मोहन थाल का विशेष स्थान है.

Sunil Kumar Dhangadamajhi

𝘌𝘥𝘪𝘵𝘰𝘳, 𝘠𝘢𝘥𝘶 𝘕𝘦𝘸𝘴 𝘕𝘢𝘵𝘪𝘰𝘯 ✉yadunewsnation@gmail.com

http://yadunewsnation.in