स्वरोजगार ने बदली बीएड पास इंदु की तकदीर, बकरी पालन से की थी अपने काम की शुरुआत

इंदु भारती का घर सुपौल जिले के निर्मली प्रखंड के बेलाशृंगार मोती में है, जो बिहार के शोक कहे जाने वाली नदी कोसी के किनारे है. हर साल बाढ़ के कारण उन्हें अपने पूरे परिवार के साथ तटबंध पर जीवन-यापन करना पड़ता था. वहीं, घर चलाने के लिए उनको काफी मशक्कत करनी पड़ती थी. पढ़ी-लिखी होने के बावजूद पति व पत्नी दोनों मनरेगा में मजदूरी कर किसी तरह अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे. मजदूरी से होने वाली कमाई से जब परिवार का पेट नहीं भर पा रहा था, तब इंदु के पति बाहर ट्रक चलाने लगे. इसी बीच इंदु भी साल 2014 में जीविका समूह से जुड़ गयीं. उन्होंने स्थानीय स्वयं सहायता समूह से 1300 रुपये का ऋण लिया और इन पैसों से एक बकरी खरीदी. इस तरह उन्होंने बकरी पालन शुरू कर दी. इस काम में उनके घर वालों ने भी उनका साथ दिया.

खेती में पति की मदद करने के लिए सीख रही हैं ट्रैक्टर चलाना

इंदु भारती का मायका पटना के अनीसाबाद इलाके में है. उन्होंने अपनी स्कूली और कॉलेज की पढ़ाई पटना से ही पूरी की है. स्नातक और बीएड की डिग्री रखने वालीं इंदु मानती हैं कि अगर समाज में बदलाव लाना है, तो शिक्षा बहुत जरूरी है. लिहाजा, अपने काम से फुरसत मिलने पर वह गांव में अपने आस-पड़ाेस के बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती हैं. इस काम से भी उन्हें अच्छी-खासी इनकम हो जाती है. वह शिक्षक बनने की भी ख्वाहिश रखती हैं. इसके लिए वह सीटीइटी परीक्षा की भी तैयारी कर रही हैं. उनके भीतर कुछ नया सीखने की गजब की ललक है. वह इन दिनों अपने पति के साथ ट्रैक्टर चलाना सीख रही हैं. वे बताती हैं, ‘‘मुझे ट्रैक्टर चलाते देख गांव की दूसरी महिलाएं भी काफी प्रेरित हो रही हैं.’’ इस प्रकार इंदु की कहानी उन लाखों महिलाओं के लिए एक मिसाल है, जो अपने घर में ही कोई न कोई आजीविका अपनाकर गरीबी को मात देने की ख्वाहिश रखती हैं.

सिर्फ एक बकरी से शुरू किया अपना काम

इंदु ने साल 2014 में बकरी के लिए छोटे बच्चे से बकरी पालन की शुरुआत की. धीरे-धीरे उनकी संख्या बढ़ती चली गयी. बकरी पालन व अन्य कामों से आज उनकी सालाना आमदनी 5 लाख से ऊपर हो गयी है. अब उन्होंने अपने पति को भी वापस घर बुला लिया है. वे भी इस काम में मदद करते हैं. इंदु ने खेती के लिए एक ट्रैक्टर भी खरीद लिया है. इसके अलावा, वह सिलाई भी करती हैं और गांव की लड़कियों को ट्रेनिंग भी देती हैं, जिससे वे भी आत्मनिर्भर बन सकें.

Sunil Kumar Dhangadamajhi

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