who attacked nord stream gas pipeline

रूस से यूरोप को गैस की सप्लाई नॉर्डस्ट्रीम पाइपलाइन के जरिये की जाती है, जिसे पिछले सितंबर में बाल्टिक सागर में नुकसान पहुंचाया गया था। इस हमले से यूरोप को गैस की सप्लाई बाधित हुई और अंतरराष्ट्रीय बाजार में एनर्जी प्राइसेस में बढ़ोतरी हुई थी। तब अमेरिका और पश्चिमी देशों की ओर से इस तरह के आरोप लगे थे कि रूस ने ही इस पाइपलाइन को नुकसान पहुंचाया है ताकि यूरोप पर दबाव बने। असल में, यूरोप को अपनी जरूरत की 40 फीसदी गैस रूस से मिलती है। सर्दियों से पहले हुए इस हमले से यूरोप की इकॉनमी पर दबाव भी बना था।

हाल में इस तरह की रिपोर्ट्स आई हैं कि पाइपलाइन पर हमले के पीछे रूस का हाथ नहीं था। अगर ऐसा है तो इस हमले के पीछे कौन था? इस सवाल का जवाब अभी मिलना बाकी है, लेकिन अमेरिका और पश्चिमी देशों में इसकी जांच शुरू हो गई है। अमेरिका इस एंगल से जांच कर रहा है कि कहीं यूक्रेन समर्थक किसी समूह ने तो यह काम नहीं किया? जर्मनी ने भी बताया है कि उसने इस हमले के संदेह में एक जहाज की तलाशी ली है।

नॉर्डस्ट्रीम पाइपलाइन

अमेरिकी और यूरोपीय देशों को यह पता लगाने में कुछ वक्त लगेगा कि इस हमले के पीछे किसका हाथ था, लेकिन वे यह बात मान चुके हैं कि नॉर्डस्ट्रीम पाइपलाइन को नुकसान न ही रूस की सरकार और ना ही रूस समर्थक किसी समूह ने पहुंचाया था। वे यह भी कह रहे हैं कि यूक्रेन की सरकार का भी इस हमले में हाथ नहीं था। यूक्रेन के अधिकारियों ने भी यही बात कही है। उनकी बात सही भी लगती है क्योंकि इससे यूक्रेन को कोई फायदा नहीं होता और दूसरी ओर उसके यूरोपीय सहयोगी देश नाराज भी हो जाते। मगर यूक्रेन अभी भी इसके लिए रूस की ओर उंगली उठा रहा है। उसका कहना है कि पाइपलाइन पर हमले से सबसे अधिक फायदा रूस को होना था। मगर उसके इस दावे में दम नहीं है। यह बात खुद जर्मनी और अमेरिका जैसे उसके सहयोगी देश कह रहे हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि इन देशों ने पाइपलाइन पर हमले में यूक्रेन समर्थक ग्रुप का हाथ होने की संभावना से पहले इनकार नहीं किया था।

नॉर्डस्ट्रीम पाइपलाइन को लेकर नए घटनाक्रम का असर नैटो पर भी पड़ने की आशंका है। अमेरिका का मानना है कि अगर हमले के पीछे यूक्रेन समर्थक ग्रुप का हाथ होने की पुष्टि होती है तो इससे नैटो में शामिल जर्मनी के यूक्रेन के साथ रिश्ते खराब हो सकते हैं। पिछले साल 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूस के हमले से पहले जर्मनी और रूस के बीच करीबी ताल्लुकात थे। खासतौर पर जर्मनी की इकॉनमी को रूसी गैस से बड़ी ताकत मिलती थी। इसी वजह से जर्मनी ने यूक्रेन को सैन्य मदद देने की हामी भी देर से भरी। खैर, पाइपलाइन पर हमले की जांच में अगर सचमुच यूक्रेन समर्थक किसी ग्रुप का हाथ होने की पुष्टि होती है तो यह देखना होगा कि नैटो पर उसके असर की अमेरिकी आशंका कितनी सही साबित होती है।

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं

Sunil Kumar Dhangadamajhi

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