लखनऊ: इंटरनेशनल चाइल्डहुड कैंसर डे (International Childhood Cancer Day) हर साल 15 फरवरी को मनाया जाता है. इसका उद्देश्य लोगों को बच्चों में होने वाले कैंसर के बारे में जागरूक करना है. सही समय पर कैंसर का पता न चलने पर हर साल लाखों बच्चों की कैंसर से मौत हो जाती है. इसके पीछे कारण है कि लोग यह मानते हैं कि कैंसर बड़ों-बर्जुगों को होने वाली बीमारी है. इसके चलते बच्चों में कैंसर की बीमारी के लक्षण आमतौर पर नजरअंदाज कर दिए जाते हैं. क्योंकि ये लक्षण कई अन्य बीमारियों के भी हो सकते हैं.
इंटरनेशनल चाइल्डहुड कैंसर डे पहली बार 2002 में इंटरनेशनल चाइल्डहुड कैंसर इंटरनेशनल ने मनाना शुरू किया था. यह संगठन बच्चों के कैंसर के बारे में जागरूकता, उनके इलाज और मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में सहायता करता है. इस बार International Childhood Cancer Day की थीम अनवीलिंग चैलेंजेस (Unveiling Challenges) है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर में हर दिन 1000 से ज्यादा कैंसर के मामले बच्चों में देखने को मिलते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार कुछ गंभीर संक्रमण जैसे एचआईवी, एपस्टीन बार वायरस और मलेरिया चाइल्डहुड कैंसर के मुख्य कारक हैं. कैंसर पीड़ित बच्चों में से 10 फीसदी में अनुवांशिक कारणों से भी ये समस्या होती है. अभी बच्चों में कैंसर के कारणों का पता लगाने के लिए शोध जारी हैं.
कल्याण सिंह कैंसर इंस्टीट्यूट लखनऊ की पीडियाट्रिक आंकोलॉजिस्ट डॉ. गीतिका पंत बताती हैं कि बच्चों में सबसे कॉमन कैंसर ल्यूकेमिया या ब्लड कैंसर (Leukemia) और लिम्फोमा (Lymphoma) हैं. जबकि दूसरा सबसे ज्यादा पाया जाने वाला कैंसर ब्रेन कैंसर (Brain Cancer) है. लेकिन इनके लक्षण सामान्य तौर पर ऐसे होते हैं जो कई बीमारियों में हो सकते हैं. इसलिए कैंसर की पहचान समय पर नहीं हो पाती है. यदि शुरुआती लक्षणों को डॉक्टर समय पर पहचान लें और मरीज को कैंसर चिकित्सक के पास भेज दें तो बच्चों की जाना बचाना संभव हो सकता है.
डॉ. गीतिका पंत के अनुसार बोन कैंसर (Bone Cancer) भी बच्चों में पाया जाता है. इसमें सूजन, बुखार हड्डियों में दर्द की शिकायत होती है. यदि समय पर पहचान न हो तो हड्डी का कैंसर धीरे-धीरे पूरे शरीर के अंगों को अपनी चपेट में ले लेता है. जिससे इलाज में दिक्कत होती है.
बच्चों में रेटिनो ब्लॉस्टोमा (Retino blastoma) भी पाया जाता है. इसकी शुरुआत में आंख की पुतली में सफेद धब्बा जैसा दिखता है. या फिर यह कह सकते हैं कि आंखें बिल्ली की तरह होती हैं. यदि इसी स्थिति में बच्चा डॉक्टर के पास पहुंच जाता है तो इलाज से उसे ठीक किया जा सकता है. लेकिन कैंसर फैलने पर आंख के साथ दिमाग भी पहुंच जाता है. साथ ही पूरी आंख बाहर आ जाती है. ऐसे में इलाज के बावजूद मरीज बच नहीं पाता है
डॉ. गीतिका पंत बताती हैं कि देश में जितने बच्चे कैंसर के हैं, उनमें से आधे से ज्यादा में इस बीमारी की पहचान नहीं हो पाती है. जिनकी होती है वह भी थर्ड या फोर्थ स्टेज में डॉक्टर के पास पहुंचते हैं. ऐसी स्थिति में कैंसर शरीर में फैल जाता है और इलजा का अधिक फायदा नहीं होता है. वह बताती है कि भारत में जितने भी कैंसर के बच्चे सामने आते हैं, उनका पांचवां हिस्सा यूपी में मरीज होते हैं.
विश्व में हर तीन मिनट में एक बच्चे में कैंसर की पहचान होती है. दुनिया भर में बचपन में होने वाली मौतों के प्रमुख कारण में कैंसर नौवें स्थान पर है. भारत में सभी आयु वर्ग में होने वाले कैंसर की तुलना में बचपन के कैंसर (0-19 वर्ष) का अनुपात राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के अनुसार 1% से 4.9% तक है. अस्पताल से मिले आंकड़ों के अनुसार भारत में 5 से 14 साल की उम्र के बच्चों की मृत्यु का नौवां बड़ा कारण कैंसर है.
लखनऊ में हुई एक स्टडी के अनुसार शुरुआती इलाज में देरी का कारण मरीज को समय से उच्च चिकित्सा संस्थान के लिए रेफर न करना है. स्टडी में यह भी निष्कर्ष निकला कि प्राथमिक (Primary), माध्यमिक (Secondary) और तृतीयक (Tertiary) स्तर पर स्वास्थ्य सेवाएं देने वालों के प्रशिक्षण जरूरत है.
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शरीर का वजन तेजी से कम होना
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लंबे समय तक बुखार रहना
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थकान व कमजोरी होना
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शरीर पर गांठ, दर्द या सूजन होना
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शरीर पर चक्कते होना
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सिर दर्द के साथ उल्टी होना