आत्मसंयम सबसे बड़ा तप -मुनि ज्ञानेन्द्र

शिलांग (बर्धमान जैन): मुनिश्री ज्ञानेन्द्र कुमार जी मुनिश्री प्रशांत कुमार जी के सान्निध्य में अक्षय तृतीया में नौ तपस्वीयों ने वर्षीतप सम्पन्न किया। समारोह को संबोधित करते हुए मुनिश्री ज्ञानेन्द्र कुमार जी ने कहा- तपस्या के अनेक प्रकार है। तपस्या कर्म निर्जरा का साधन है। तप साधना से आत्मकल्याण का रास्ता प्रशस्त होता है। व्यक्ति क्रोध विजय का वर्षीतप भी कर सकता है।यह अपने आप में उच्च कोटि की साधना है। क्षमा का वर्षीतप भी हमारी साधना का महत्वपूर्ण अंग है। त्याग प्रत्याख्यान की साधना करना। प्रतिदिन व्यक्ति बीस घंटे का त्याग कर सकता है। तपस्या किसी भी प्रकार से हो सकती है। अपने मन, स्वभाव, व्यवहार, आसक्ति, भावों को वश में करना विशिष्ट तपस्या कहलाती है। ये साधना का सार है। इंद्रियों को वश में करने वाला ही तपस्या कर सकता है। आत्मसंयम सबसे बड़ा तप है।भगवान ऋषभदेव ने 400 दिन की तपस्या का आज के दिन पारणा किया उस उपलक्ष्य में साल भर में 400 सामायिक का लक्ष्य रखें। प्रतिदिन 54 लोगस्स की साधना आराधना करने का मनोभाव रखें। शिलांग सभा, महिला मण्डल, युवक परिषद साधुवाद के पात्र है।पूरी जागरुकता से रास्ते की सेवा एवं प्रवास का दायित्व पूर्ण किया है।
मुनिश्री प्रशांत कुमार जी ने कहा भगवान ऋषभदेव इस अवसर्पिणी काल के आदि तीर्थंकर थे। उन्होंने संयम ग्रहण से पूर्व समाज को असि मसि एवं कृषि का प्रशिक्षण दिया था। इस युग में सबसे पहले उन्होंने ही राजतंत्र का सूत्रपात किया और एक सभ्य समाज व्यवस्था स्थापित की थी।अनेक प्रकार के शिल्प कर्म भी उन्होंने लोगों को सिखाए।अध्यात्म का प्रशिक्षण भी सबसे पहले उन्होंने ही दिया था। प्रभु ऋषभ के जीवन से त्याग और संयम की प्रेरणा ग्रहण करें। आज के दिन इक्षुरसास्वादन तो बहुत सारे लोग करते हैं लेकिन साथ में यह संकल्प भी करें कि मैं अपनी वाणी में, अपने व्यवहार में इक्षु रस जैसी मिठास रखूंगा।कम से कम सप्ताह में एक दिन तो वाणी में कड़वाहट न लाएं। ऋषभ देव ने मुनि जीवन को स्वीकार कर भोग से त्याग की ओर बढ़ना लोगों को सिखाया। हजारों हज़ारों लोगे ने उनका अनुसरण किया। भगवान ऋषभ की बारह मास की तपस्या की स्मृति में आज भी हजारों लोग वर्ष भर तक एकांतर निराहार रहकर वर्षीतप की तपस्या करते हैं। मुनिश्री ज्ञानेन्द्र कुमार जी साधक, तपस्वी संत है।तप के साथ साथ अनेक प्रकार की साधना चलती रहती है। श्रावक समाज की सार संभाल, प्रेरणा, कंठस्थ ज्ञान की प्रेरणा प्रदान करते रहते है। इनसे सभी को प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए।
मुनिश्री कुमुद कुमारजी ने कहा – प्रभु ऋषभ को बारह महीने और चालीस दिन की तपस्या का पारणा उन्हीं के प्रपौत्र श्रेयांस कुमार ने इक्षुरस से करवाया था। उन्होंने जीवों को कष्ट देने के लिए नहीं अपितु व्यवस्था के लिए पशुओं के मुंह पर छिंकी बंधवाई थी। उससे भी इतने अंतराय कर्म बंध गए तो हमें भी सोचना चाहिए कि हम कितनी अंतराय देते रहते है।हमारा क्या होगा ? त्याग तपस्या, दीक्षा में धर्म साधना में कभी भी अंतराय नहीं देनी चाहिए। कर्म के सिद्धांत को अगर समझ लिया जाए तो व्यक्ति अनावश्यक कर्म बंधन से बच जाता है। इस कलिकाल में भी वर्षीतप करने वाले साधक धन्य है।

मुनिश्री पद्म कुमार जी ने कहा- तपस्या की अनुमोदना करना सरल है लेकिन तप करना बहुत ही कठिन है।मनोबली एवं हलुकर्मी व्यक्ति ही तपाराधना कर सकता है। मुनिश्री ज्ञानेन्द्र कुमार जी उच्च साधक है।आज आपका 13 वां वर्षीतप पूर्ण हो रहा है मैं आपकी तप साधना को अनंत अनंत प्रणाम करता हूं। कार्यक्रम का शुभारंभ महिला मण्डल के मंगलाचरण से हुआ।सभा अध्यक्ष अजित बोथरा ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया। महासभा उपाध्यक्ष बसंत सुराणा,मनोज लूणिया, पूर्वोत्तर सभा अध्यक्ष बजरंग सुराणा, सिलचर सभा अध्यक्ष नवरत्न चौपड़ा, गुवाहाटी सभा अध्यक्ष बाबूलाल सुराणा,तेयुप अध्यक्ष हेमंत गोलछा,आगम प्रभारी दिलीप दुगड़, भारती बरडिया, पूर्वोत्तर मारवाड़ी समाज के महामंत्री रमेश चांडक, श्रीभूमि से प्रमित गंग, सुनिता छाजेड़,बरडिया परिवार,डागा परिवार,बैंगाणी परिवार, चौरड़िया परिवार, महिला मण्डल ने वक्तव्य, गीत एवं नाटक के द्वारा अभिव्यक्ति दी। श्रीमती किरण बच्छावत, श्रीमती विमला डागा, श्रीमती कमला डागा, श्रीमती सरला बरडिया, श्रीमती भारती बरडिया, श्रीमती विमला बैंगाणी, श्रीमती मंजुला चौरड़िया, श्रीमती अंकिता छाजेड़ ने वर्षीतप पूर्ण किया। श्रीमती आस्था संचेती ने 372 एकासन तप पूर्ण किया। आभार ज्ञापन सभा मंत्री विनोद सुराणा ने किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री कुमुद कुमारजी ने किया। शिलांग सभा, मंडल,तेयुप एवं पूर्वोत्तर सभा द्वारा तपाभिनंदन किया गया। तपस्वी परिचय एवं सम्मान समारोह का संचालन विमल सुराणा,धनपत दुधोडिया, नीरज सुराणा,जीवन सुराणा ने किया।

Sunil Kumar Dhangadamajhi

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