राजा वीरन अल्गुमुत्थू यादव की 312वीं जयंती पर विशेष
ये बात बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि अंग्रेजों के विरूद्ध आज़ादी का बिगुल 1857 की क्राँति से 100 वर्ष पहले ही तमिलनाडू में बज गया था। आज बात करते हैं भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी तमिलनाडु के कोने राजवंश के वीरन राजा अल्गुमुत्थू यादव की जिन्होंने अंग्रजों के विरुद्ध सर्वप्रथम तलवार उठाई थीदिनांक 11जुलाई सन् 1755-57 में।
जैसे ही हम तमिलनाडु की रजधानी चेन्नई के रेलवे स्टेशन पर हम उतरते हैं तो नजरें वहाँ लगी एक विशाल मूर्ति पर जाती है। यह मूर्ति भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी तमिल टाइगर अमरशहीद महावीरण राजा अल्गुमुत्थू कोने यादव की है। तमिलनाडु सरकार हर वर्ष 11जुलाई को इस वीर योद्धा के सम्मान में धूमधाम से राजा अल्गुमुत्थू यादव जयंती मनाती है और इस दिन तमिलनाडु में राज्य अवकाश रहता है। राजा अल्गुमुत्थू जी के नाम पर भारत सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया था।
11 जुलाई 1710 को तमिलनाडु के तिरुनेलवेली स्टेट में कोने गोत्र के क्षत्रीय यदुवंशी राजघराने में जनमे राजा अल्गुमुत्थू यादव ने सन् 1728-1759 तक राज किया। तिरूनेलवेली के यदुवंशी “Ayi” kingdom के वंशज थे।अंग्रेज़ो के आत्याचार से जब पुरे आर्यवर्त की धरती कंहार उठी और जब सारे राजा मजबूर और लाचार होकर बैठ गए थे तब 1758 में राजा अल्गुमुत्थू यादव ने अपने यादव सामंतों के साथ मिलकर सेना बना अंग्रेजों से रणभूमि में लोहा लेने के लिए बिगुल बजाया।
आर्यवर्त की धरती को अंग्रेजों की बेड़ियों से आज़ाद कराने के लिए राजा अल्गुमुत्थू ने कडा़ संघर्ष किया और फिर 1759 में हिंदू धर्म और हिंद की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। दुराचारी अंग्रेज़ो ने राजा अल्गुमुत्थू और उनके यादव वीरों को छल से हरा बन्दी बना लिया और विद्रोह को बंद करने के लिये तरह तरह के प्रलोभन और यातनाएं दी लेकिन राजा अल्गुमुत्थू और क्षत्रीय यादव वीरो ने अंग्रेज़ों का माफ़ीनामा ठुकरा अपने जागीर की परवाह न करते हुए तोपों के गरजते गोलो को अपने फौलादी छाती पर ले अमरशहीद हो अपना क्षत्रिय धर्म निभा गए लेकिन कायर अंग्रेज़ो के सामने कभी झुकना स्वीकार नही किया।
चाहते तो ये रणबांकुरे अंग्रेज़ो से संधि कर औरो की तरह अपनी जागीर बचा आज बड़े प्रिंसली स्टेट के मालिक कहलाते, चाहते तो औरों की तरह अंग्रेज़ो की पैरवी कर नाम की रेजिमेंट ले लेते ।
इतिहास भी आज का साक्षी है कि वर्तमान समय मे 1857 के बाद यदुवंशी क्षत्रियो के “मैसूर राजघराने” “नजरगंज”, ” नैगुवा” इतियादी को लेकर मात्र 10 प्रिंसली स्टेट का ही अस्तित्व बचा।
द्वारकाधीश के रणबांकुरे वंशज यदुवंशियो ने हरमेशा सर उठा कर जीना पसन्द किया और कभी भी अपने क्षत्रिय आन मर्यादा से समझौता नही किया। यदुवँशी अपने बाहुबल और तलवार के दम पर शासन करना पसंद करते हैं औरो की भांति भीख में मिली जागीर पर नहीं। तमिलनाडु में राजा अल्गुमुत्थू यादव की हवेलियां और महल के खण्डहर मौजूद है एवं इनके वंशज भी।
द्वारिका के विनाश के बाद बचे हुए ज्यादातर यदुवंशी ब्रज चले गए एवं थोड़े बहुत यदुवंशी महाऋषि अगस्त्य के साथ दक्षिण में माइग्रेट कर गए। दक्षिण में यदुवंश को कोने, वाडियार, और आयर नाम से भी जाना जाता है। “आयर” शब्द आर्य शब्द का अपभ्रंश है इसिलए दक्षिण में यादवों को आयर की भी संज्ञा दी गई है।
श्याम नंदन कुमार यादव
बिहार