मंगल भावना समारोह में चालीस वक्ताओं ने दीं अभिव्यक्ति

तप त्याग से जीवन बनता महान -मुनि प्रशांत

कांटाबांजी (वर्धमान जैन): चातुर्मास की सम्पन्नता पर द्विदिवसीय मंगल भावना समारोह को सम्बोधित करते हुए मुनि प्रशांत कुमार जी ने कहा- कांटाबांजी का ऐतिहासिक चातुर्मास सम्पन्न हो रहा है। चार महीने अध्यात्म का ठाठ लगा रहा। तप, त्याग से जीवन महान बनता है। त्याग करने वाला केवल वस्तु का ही नही अपितु आसक्ति का भी त्याग करता है। त्याग से हमारी चेतना अन्तर्मुखी बनती है। वस्तु त्याग के साथ अपनी बुरी आदतों का भी परिहार करना चाहिए नकारात्मक भाव हमारे व्यवहार को प्रभावित करते हैं। संग्रह वृति ने कितने-कितने अपराध को जन्म दिया है। आज के इस प्रतिस्पर्धावादी युग में व्यक्ति की बढ़ती इच्छाओं ने व्यक्ति को इंसानियत से भटका दिया है। चातुर्मास का समय आत्म जागरण का होता है। चारित्रआत्मा से प्रेरणा प्राप्त कर स्वाध्याय का अभ्यास करना चाहिए जिससे मौलिक एवं यर्थाथ ज्ञान का बोध हो सकें। ज्ञानाराधना से अज्ञान दूर होता है। ज्ञान के अभाव में अनेक भ्रांतिया पैदा हो जाती है। ज्ञान प्राप्त करने के बाद उसका जितना मनन किया जाता है, उतना ही भीतर में परिपक्कता आती है। साहित्य ग्रंथों में विशाल ज्ञान का भण्डार है। भारतीय साहित्य ने पाश्चात्य चिंतको को भी प्रभावित किया है। प्रत्येक स्रवक को अपनी जीवनचर्या में सामायिक साधना का अभ्यास करना चाहिए। श्रावक के बारहव्रत मे सामायिक व्रत का समावेश किया गया जिससे श्रावकत्व की अनुपालना हो सकें। सामायिक की शुद्ध पालना करने वाला अनन्त कर्मो का क्षय कर देता है। हमारे जीवन में अध्यात्म की भावना पुष्ट बने वैसी भावना करते रहें। कांटाबांजी का श्रावक समाज धर्मसंघ के प्रति समर्पित श्रद्धा, भक्ति-भावना से परिपूर्ण अध्यात्मनिष्ठ है। अपने जीवन में ओर अधिक धर्मनिष्ठ बनें। तेरापंथ सभा, युवक परिषद, महिला मण्डल, कन्या मण्डल, ज्ञानशाला सभी संस्थाओं के पदाधिकारी एवं जैन-अजैन समाज ने चातुर्मास मे भरपूर लाभ उठाने के साथ अपने दायित्व का अच्छे से निर्वाहन किया। कांटाबांजी के श्रावक समाज में श्रद्धा-भावना उत्साह अनूठा है। आप सब की धर्मनिष्ठ भावना सदेव बनी रहें। साधु-साध्वी की सेवा इसी जागरूकता के साथ करते रहें। यहां चातुर्मास कर हमें परम प्रसन्नता हो रही है। सबके प्रति मंगल भावना। सबसे खमतखामणा।

मुनि कुमुद कुमारजी ने कहा- नदी, हवा बादल एवं पंछी की तरह सन्तजन भी चलते रहते है। वे यायावर बनकर धर्म का बोध देते हैं। साधु श्रावक का जोड़ा होता है। साधु की साधना में श्रावक निमित बनता है तो श्रावक को धर्म का बोध साधु प्रदान करते हैं। चातुर्मास करने का उद्देश्य होता है ज्ञान, दर्शन, चरित्र एवं तप की साधना-आराधना विशेष रूप से हो । भाषणबाजी या मोमेंटो वितरण करना, बडे-बडे कार्यक्रमों का आयोजन से चातुर्मास सफल नही होता है। मुझे सात्विक गर्व है कि कांटाबांजी में साठ कार्यक्रम ज्ञान, दर्शन चरित्र एवं तप को बढाने वाले श्रावकत्व को मजबूती प्रदान करने वाले एवं जैनत्व को परिपक्क करने वाले आयोजन हुए। सभा ने चातुर्मास की जिम्मेदारी एवं साधार्मिक वात्सल्य का प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया। युवक परिषद का उत्साह कार्य करने की निष्ठा सेवाभावना अनुकरणीय है। महिला मण्डल, कन्या मण्डल, ज्ञानशाला परिवार के योगदान से चातुर्मास बहुत अच्छा कार्यकारी एवं सुखद रहा। कांटाबांजी का चातुर्मास मेरे लिए सुखद यादगार रहेगा।

मीडिया प्रभारी अविनाश जैन ने बताया द्विदिवसीय मंगल भावना समारोह में तेरापंथ युवक परिषद, महिला मण्डल, कन्या मण्डल, ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी ने सामूहिक गीत की प्रस्तुति दी। तेरापंथ सभा अध्यक्ष – युवराज जैन, तेयुप अध्यक्ष – अंकित जैन, महिला मण्डल – अध्यक्षा बॉबी जैन, कन्या मण्डल संयोजिका – पूजा ने वक्तव्य के द्वारा मुनिद्वय को मंगलकामना करते हुए कृतज्ञता व्यक्त की। चालीस से अधिक श्रावक-श्राविकाओं ने गीत, कविता एवं व्यक्तव्य के द्वारा मंगलभावना व्यक्त की। अनेक-श्रावक-श्राविकाओं ने त्याग-संकल्प की भेंट मुनिद्वय को दी। प्रथमदिवस का संचालन गजानन जैन एवं संजय जैन ने किया। दूसरे दिवस का संचालन सभामंत्री सुमित जैन ने किया। सम्पूर्ण श्रावक समाज ने भावपूर्ण शब्दो से कृतज्ञता व्यक्त करते हुए मुनिद्वय से क्षमायाचना की।

Sunil Kumar Dhangadamajhi

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