झारखंड के किसानों को मालामाल कर देगा करंज, डायबिटीज-अल्सर समेत आधा दर्जन से अधिक बीमारियों की है दवा

डायबिटीज, अल्सर समेत आधा दर्जन से अधिक बीमारियों की दवा है करंज. इसका इस्तेमाल दवा बनाने में तो होता ही है, कई उद्योगों में भी इसका इस्तेमाल होता है. करंज के तेल, फूल और पत्ती से कई गंभीर रोगों की दवा बनती है. मधुमेह यानी डायबिटीज, अल्सर, गठिया, वात, कफ, उदर रोग यानी पेट की बीमारियां और आंख की बीमारियों के इलाज में करंज से बनी दवाएं रामबाण का काम करती हैं. आयुर्वेदिक चिकित्सा में इसके तेल का प्रयोग किया जाता है.

करंज के अलग-अलग हिस्से का होता है अलग-अलग इस्तेमाल

वन उत्पादकता संस्थान रांची के बीडी पंडित के मुताबिक, झारखंड में बड़े पैमाने पर करंज के पेड़ पाये जाते हैं. पेड़ के अलग-अलग हिस्से का अलग-अलग उपयोग होता है. इसलिए प्रदेश के किसान इससे मोटी कमाई कर सकते हैं. इसकी पतली टहनी दातुन करने के काम आता है. करंज के तेल का इस्तेमाल दीपावली में दीये जलाने में होता है. इसके तेल का इस्तेमाल कई प्रकार के चर्म रोग के उपचार में भी होता है. ग्रामीण इलाकों में लोग इस तेल का ईंधन के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं.

करंज से बनता है बायो-डीजल

इतना ही नहीं, इसके और भी कई गुण हैं. यह बायो-डीजल बनाने में काम आता है. इससे निकलने वाले तेल का उपयोग चमड़ा उद्योग, साबुन उद्योग, फिनाइल बनाने के उद्योग में भी होता है. ग्रीस व अन्य तेलों के साथ करंज का तेल मिलाकर पॉलिस बनाया जाता है. इसकी खल्ली का इस्तेमाल किसान खेतों की उपज बढ़ाने के लिए करते हैं. करंज का तेल खेतों में कीटनाशक का भी काम करता है.

बड़े काम की चीज है करंज की लकड़ी

इसकी लकड़ी भी बड़े काम की चीज है. इससे कृषि के औजार बनाये जाते हैं. मकान बनाने में इसकी लकड़ी का उपयोग होता है. साथ ही ईंधन के रूप में इसका उपयोग होता है. करंज देश के अधिकांश भागों में पाया जाता है. फेबेसी कुल का यह एक सदाबहार वृक्ष है. ऐसे क्षेत्रों में पाया जाता है, जहां साल में 500-2500 मिलीमीटर वर्षा होती है. न्यूनतम तापमान 0 डिग्री सेंटीग्रेड से 16 डिग्री सेंटीग्रेड और अधिकतम तापमान 27 डिग्री से 50 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच होनी चाहिए.

भारत में 200 मीट्रिक टन करंज के तेल का होता है उत्पादन

माना जाता है कि करंज का उत्पत्ति स्थल भारत ही है. इस छायादार वृक्ष की छांव में घास की अच्छी-खासी वृद्धि होती है. इसलिए इसे चारागाह तैयार करने के लिए उपयुक्त माना जाता है. भारत में सालाना 200 मीट्रिक टन करंज के तेल का उत्पादन होता है. बायो-डीजल का बेहतरीन स्रोत है, जो झारखंड के सभी क्षेत्रों में पाया जाता है. इसके गुणों को देखते हुए हाल के वर्षों में सड़कों और राजमार्गों के किनारे बड़े पैमाने पर करंज के पौधे लगाये गये हैं.

Sunil Kumar Dhangadamajhi

𝘌𝘥𝘪𝘵𝘰𝘳, 𝘠𝘢𝘥𝘶 𝘕𝘦𝘸𝘴 𝘕𝘢𝘵𝘪𝘰𝘯 ✉yadunewsnation@gmail.com

http://yadunewsnation.in