रिपोर्ट के अनुसार, इस छापेमारी में एफबीआई और अमेरिकी अटॉर्नी ऑफिस शामिल थे। नेशनल रिव्यू की खबर के अनुसार दोनों ने ही रिपोर्ट पर टिप्पणी करने से इनकार किया है। मैनहट्टन स्थित चीनी ‘पुलिस स्टेशन’ के बारे में सबसे पहले एनजीओ सेफगार्ड डिफेंडर्स की एक रिपोर्ट ने प्रकाश डाला था। इसमें बताया गया कि कई देशों में विभिन्न चीनी प्रांतों और शहरों की ओर से 100 से अधिक पुलिस स्टेशनों का संचालन किया जा रहा है।
यूरोप में भी चीन के पुलिस स्टेशन
एक दर्जन से अधिक अन्य सरकारों ने भी अपने क्षेत्र में चल रहे स्टेशनों की जांच शुरू कर दी है। रिपोर्ट में बताई गई एफबीआई छापेमारी इस तरह की रेड का पहला ज्ञात उदाहरण है। मानवाधिकार समूह सेफगार्ड डिफेंडर्स ने पिछले साल एक रिपोर्ट में कहा था कि सर्बिया, स्पेन और फ्रांस में भी पुलिस स्टेशनों से इसी तरह के ऑपरेशन किए जा रहे हैं। सेफगार्ड डिफेंडर्स ने कहा कि उन्हें सबूत मिले हैं कि अमेरिका में ऐसे चार पुलिस स्टेशन मौजूद हैं, दो न्यूयॉर्क में, एक लॉस एंजिल्स में और दूसरा किसी अज्ञात जगह पर।
क्या करते हैं चीन के पुलिस स्टेशन?
एफबीआई को शक था कि बिल्डिंग में एक चीनी पुलिस स्टेशन अधिकार क्षेत्र या राजनयिक मंजूरी के बिना संचालित किया जा रहा है। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार चीनी स्टेशन ‘खुफिया जानकारी इकट्ठा करते हैं’ और स्थानीय अधिकारियों के सहयोग के बिना विदेशों में आपराधिक मामलों को सुलझाते हैं। ऑफिस का संचालन करने वाले की पहचान स्पष्ट नहीं है। कभी उन्हें वॉलंटियर्स कहा जाता है तो कभी स्टाफ मेम्बर, वहीं कुछ मामलों में उन्हें डायरेक्टर के रूप में बताया जाता है।
चीनी दूतावास ने क्या कहा?
वॉशिंगटन स्थित चीनी दूतावास ने बुधवार को स्टेशनों की भूमिका के बारे में कहा कि उन्हें वॉलंटियर्स चलाते हैं। ये चीनी नागरिकों की छोटे-मोटे कामों में मदद करते हैं, जैसे- ड्राइविंग लाइसेंस रिन्यू कराना वगैरह-वगैरह। पश्चिमी अधिकारी स्टेशनों को ‘असंतुष्टों’ सहित विदेशों में चीनी नागरिकों पर नजर रखने के लिए बीजिंग के बड़े अभियान के हिस्से के रूप में देखते हैं। इसमें सबसे कुख्यात अभियान को ‘ऑपरेशन फॉक्स हंट’ के नाम से जाना जाता है जिसमें चीनी अधिकारी विदेशों में भगोड़ों को पकड़ते हैं और उन्हें घर लौटने के लिए मजबूर करते हैं।