कविता: मधुर स्वर

 

अंजान बसंत का कर आवाहन
तुम्हारे कदमों में ला सकूंगा
इतिहास को ध्वस्त करने के लिए
तुम मना करोगी एतबार है मुझे
बुला कर ला सकूंगा
पहाड़ों को/जंगलों को/निर्झरों को
कविता की तरह शब्दनिष्ठ तुम्हारी आंखेंलहराती हुई,
कत्थई नज़र तुम्हारी
सप्तर्षि की तरह पल्लवित
तुम्हारे जुल्फों की महक
अवसाद के फौलादी घर को भी
क्षण भर में पिघला दे ।।

कितने त्योहारों की खुशी
चांदनी रात की तरह
जगमगाएगा पूरी रियासत
टिमटिमाते होंगे तारें
अनामिका फूलों के महक से
महकता होगा दिल का इलाका ।।

नाचते होंगे विचित्र दृश्य
गोपन कोने में
तुम ढल गई होगी मुझ पर
गीत के तरह कंठ में ‌।।

मंजर भरे राह किनारे
महावर लगे चरण तुम्हारे
चौंकाते होंगे मानस वृक्ष लताओं को सिंहासन पर पारद सरीखा मैं
उजलेपन के गीत गाता होऊंगा ।।

भीग गया होगा जीवन
अनुराग के कंपन में
गीत भरे शबनमी तुम्हारे होठों पर
गभीर कूजन में तन्मय होता होगा
एकाकी पंछी का लय और छन्द ।।

मूल ओड़िया: प्रफुल्ल चंद्र पाढ़ी
कोलनरा, रायगडा जिला
मो_8917324525

अनुवाद : ज्योति शंकर पण्डा
शरत, मयूरभंज

Sunil Kumar Dhangadamajhi

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