हीमोफीलिया में चोट से बचाव है जरूरी

World Hemophilia Day : हीमोफीलिया एक ऐसा रोग है, जिसमें खून के थक्के नहीं जमने के कारण रक्तस्राव नहीं रुक पाता है. ऐसा शरीर में एक खास प्रोटीन की कमी से होता है. हमारे शरीर में खून के थक्के जमाने में 13 क्लॉटिंग फैक्टर मदद करते हैं. हीमोफीलिया तीन प्रकार का होता है ए, बी और सी. हीमोफीलिया ए फैक्टर आठ की कमी से होता है. उसी तरह हीमोफीलिया बी फैक्टर 9 की कमी से होता है. यह एक जेनेटिक रोग है. उसमें भी खास बात यह है कि यह रोग सिर्फ पुरुषों में होता है. महिलाएं इसकी कैरियर होती हैं. यानी यह रोग मां से बच्चे में जाता है.

क्या हैं हीमोफीलिया के लक्षण

चोट लगने या कटने पर अधिक ब्लीडिंग होना इसका प्रमुख लक्षण है. जरूरी नहीं है कि यह ब्लीडिंग बाहर ही होगी, इंटर्नल ब्लीडिंग भी होती है. दरअसल छोटे बच्चे जब घुटनों पर चलते हैं, तो घुटनों में बार-बार चोट लगने से इंटर्नल ब्लीडिंग होती है. इसके कारण घुटनों में सूजन आ जाती है. अगर बार-बार वहां चोट लगती रहे, तो धीरे-धीरे घुटना फिक्स हो जाता है, यानी मूवमेंट में परेशानी होती है. इससे बच्चा अपाहिज हो जाता है.

पहचान के लिए क्या हैं जांच

इस रोग की पहचान के लिए पहले ब्लड टेस्ट कराया जाता है. इसमें एपीटीटी जांच करायी जाती है. इस रोग में यह बढ़ा रहता है. इसके बाद फैक्टर आठ और नौ आदि की जांच की जाती है. यदि कोई फैक्टर कम मिलता है, तो फिर कितना कम है. यानी रोग के माइल्ड, मोडरेट और सीवियर होने की जांच की जाती है. हीमोफीलिया ए, बी, सी तीनों के तीन प्रकार होते हैं-माइल्ड, मोडरेट और सीवियर. जिनमें यह रोग माइल्ड लेवल में होता है, उनमें फैक्टर लेवल 5 प्रतिशत से अधिक होता है. इस टाइप का पता जल्दी नहीं चलता है. कभी अधिक चोट लग जाने या कट जाने पर इसका पता चलता है. जबकि जिन मरीजों में यह मोडरेट रूप में होता है, उनमें फैक्टर लेवल 5 प्रतिशत से कम होता है. इसमें हो सकता है कि चोट लगने ही पर ब्लीडिंग होने लगे. सीवियर वालों में फैक्टर लेवल 1 प्रतिशत या उससे कम होता है. इस रोग में बिना चोट लगे ही ब्लीडिंग हो सकती है. जोड़ों में रक्तस्राव से वह अपाहिज हो सकता है. सिर में ब्लीडिंग होने से मरीज की जान भी जा सकती है.

क्या हैं इसके लिए उपचार

सबसे पहले तो बचाव पर ध्यान देना जरूरी है. प्रयास यह होना चाहिए कि मरीज को चोट न लगे. यदि मरीज को कोई सर्जरी करानी हो या दांतों के इलाज के दौरान डॉक्टर को रोग के बारे में जानकारी देनी चाहिए. ब्लीडिंग रोकने के लिए कई तरह की दवाएं आती है. ट्रैनेकसेमिक एसिड इंजेक्शन दिया जाता है. इसके अलावा जिस क्लॉटिंग फैक्टर की कमी हो, उसका इंजेक्शन मरीज के वजन के हिसाब से देने पर भी ब्लीडिंग रुक जाती है. फैक्टर के नहीं मिलने की स्थिति में फ्रेश फ्रोजेन प्लाज्मा चढ़ाया जाता है. हीमोफीलिया ए 5000 में एक बच्चे को होता है. हीमोफीलिया बी 30000 में एक बच्चे को होता है.

क्या होती है राइस (RICE) थेरेपी

R (रेस्ट) : जिस जगह पर चोट लगे उसे तुरंत रेस्ट में लाना होता है.
I (आइस) : चोट वाली जगह पर बर्फ को कपड़े में रख कर सेंकना होता है.
C (कंप्रेसन) : चोट वाली जगह पर कपड़े को बांधना चाहिए.
E (एलिवेशन) : चोट वाले हिस्से को थोड़ा ऊंचा उठा कर रखना चाहिए.

(डॉ अविनाश कुमार सिंह से अजय कुमार की बातचीत पर आधारित)

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Sunil Kumar Dhangadamajhi

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