अमेरिका से किनारा और जिनपिंग का शाही स्‍वागत: आखिर क्‍या चाल चल रहे सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्‍मद बिन सलमान

बीजिंग: चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग का सऊदी अरब दौरा बुधवार से शुरू हो गया है। रियाद में चीनी राष्‍ट्रपति के लिए शाही स्‍वागत की तैयारी हो चुकी है। यह सब देखकर अमेरिका को भी काफी तकलीफ हो रही होगी। इस साल जून में अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडेन सऊदी अरब के दौरे पर गए थे। उनका यह दौरा काफी असफल साबित हुआ और वह खाली हाथ देश लौट आए। अमेरिका, सऊदी अरब का सबसे अहम रणनीतिक साझीदार है और चीन उसका सबसे बड़ा दुश्‍मन। ऐसे में जब क्राउन प्रिंस मोहम्‍मद बिन सलमान (MBS) जिनपिंग का स्‍वागत करकेअमेरिका और बाइडेन को बड़ा संदेश देने वाले हैं।

जिनपिंग अपने इस दौरे पर खाड़ी देशों के कई नेताओं से मुलाकात करेंगे। साल 2017 में तत्‍कालीन अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप, सऊदी अरब के दौरे पर गए थे। तीन दिनों का उनका वह दौरा काफी सावधानी से प्‍लान किया गया था। जब बाइडेन सऊदी अरब के दौरे पर गए थे तो बिना मुस्‍कुराते हुए एमबीएस ने उनका स्‍वागत किया था। इसके बाद प्रिंस ने मुलाकात में जब अमेरिका की मांग को ठुकरा कर तेल के उत्‍पादन में सीमित इजाफे का फैसला किया तो सार्वजनिक तौर पर बाइडेन को शर्मिंदगी का अहसास हुआ। इसके चार महीने बाद सऊदी अरब ने तेल के उत्‍पादन में दोगुनी कटौती का ऐलान कर दिया।
जिनपिंग का सऊदी दौरा अमेरिका को बड़ा संदेश है। अमेरिका की कई अपील के बाद भी चीन, सऊदी अरब का करीबी होता जा रहा है। वह अब न सिर्फ यहां पर व्‍यापार बल्कि सुरक्षा के मामलों में भी दखल रखता है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में यूएई के विशेषज्ञ और सीनियर फेलो अब्‍दुलखालिक अब्‍दुल्‍ला मानते हैं कि जो पहला संदेश अमेरिका को दिया जाएगा, वह होगा कि अब यह एक नया सऊदी है और नया खाड़ी क्षेत्र है। यही नई वास्तविकता है और इसे स्‍वीकारना होगा। उनकी मानें तो अब यही सच है कि चीन आगे बढ़ रहा है और एशिया तरक्‍की कर रहा है। अमेरिका को यह बात पसंद आए या ना आए लेकिन खाड़ी देशों को चीन से ऐसे ही डील करना है।

एमबीएस को पश्चिम के कई देशों ने जर्नलिस्‍ट जमाल खाशोगी की हत्‍या के बाद प्रतिबंधित कर दिया था। अब वहीं प्रिंस सलमान,चीनी राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग और अरब देशों के 14 नेताओं के साथ मुलाकात करने को तैयार हैं। दूसरी ओर चीन के लिए यह वह मौका है जब वह अपने कदम अमेरिका के सबसे करीबी साथी के घर में मजबूती से रखने को तैयार है। चीन को सऊदी से और ज्‍यादा तेल की जरूरत है और अब उसने कोविड की सख्‍त नीति में भी ढील दे दी है। दो दशक पहले चीनी नेता सऊदी अरब को ज्‍यादा तवज्‍जो नहीं देते थे। अमेरिका उसका सबसे बड़ा खरीददार था और उसकी आय का सबसे बड़ा जर‍िया था। अब स्थिति बदल चुकी है और चीन, सऊदी अरब का सबसे बड़ा ग्राहक है और व्‍यापार साझीदार है। पिछले वर्ष चीन को होने वाला निर्यात में 50 अरब डॉलर तक पहुंच गया है।

व्‍यापार के क्षेत्र में बदलते रिश्‍तों की वजह से अमेरिका का नजरिया अपने अरब साथियों की तरफ बदला। साल 2016 में तत्‍कालीन अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन ने ईरान के साथ एक बड़ा परमाणु समझौता साइल किया था। ईरान के साथ इस डील के लिए सऊदी अरब को किनारे कर दिया गया था। अमेरिका ने हमेशा सऊदी और दूसरे खाड़ी देशों पर मानवाधिकार उल्‍लंघन और तानाशाही का आरोप लगाया है। इस क्षेत्र में अमेरिकी सेना बड़े स्‍तर पर मौजूद है लेकिन इसके बाद भी रिश्‍ते कुछ खास आगे बढ़ नहीं पाए हैं।
विशेषज्ञों की मानें तो चीन के साथ रिश्‍तों में मिलिट्री भी शामिल होगी। उनका कहना है कि सऊदी अरब आज भी अमेरिका को अपना अहम साथी मानता है। लेकिन वह यह भी समझ चुका है कि हर तरह की मदद के लिए सिर्फ अमेरिका पर निर्भर रहना सही नहीं है। ऐसे में चीन उसके लिए बड़ा मददगार साबित हो सकता है। जिनपिंग का दौरा, चीन और सऊदी अरब के रिश्‍तों को एक पायदान और आगे लेकर जाने वाला साबित होगा।

Sunil Kumar Dhangadamajhi

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