वॉशिंगटन : पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे उपग्रह मानवता की सेवाएं करते हैं। हम इंटरनेट के माध्यम से उनसे जुड़ते हैं, वे मैपिंग और जीपीएस में मदद करते हैं और वे जलवायु परिवर्तन पर नजर रखने के साथ साथ अन्य काम भी करते हैं। लेकिन ‘अंतरिक्ष में कचरा’ हमारे उपग्रहों के उपयोग को खतरनाक भी बनाता है। उपग्रहों के छोटे टुकड़े अंतरिक्ष में मलबा जमा कर रहे हैं। अंतरिक्ष से कचरा हटाने की जिम्मेदारी सामूहिक है और यह जलवायु परिवर्तन की तरह ही पर्यावरण की समस्या है। उपग्रहों की मदद से जलवायु परिवर्तन का प्रबंधन किया जाता है, उसी तरह जलवायु परिवर्तन से उपग्रह के मलबे का प्रबंधन किया जा सकता है।
जलवायु परिवर्तन की तरह अंतरिक्ष में कचरे की समस्या से केवल अंतरराष्ट्रीय सहयोग से ही निपटा जा सकता है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के रूपरेखा समझौते पर 1992 में रियो पृथ्वी सम्मेलन में हस्ताक्षर किए गए थे। यह जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून का पहला और सबसे जटिल कदम था। इस समझौते में ‘समान लेकिन विभिन्न जिम्मेदारियां’ (सीबीडीआर) नामक सिद्धांत शामिल है।
यह कहता है कि देशों को वैश्विक पर्यावरण समस्याएं पैदा करने तथा इन समस्याओं से निपटने की क्षमताओं में ऐतिहासिक और मौजूदा योगदानों के अनुसार विभिन्न उपायों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। दुनिया के देशों ने माना है कि औद्योगिक देशों की विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों के मुकाबले जलवायु परिवर्तन में अधिक हिस्सेदारी रही है और इसलिए उन्हें इसके परिणामों से निपटने के लिए बड़ी जिम्मेदारी लेनी होगी।
‘पॉल्यूटर पेज’ नामक सिद्धांत के अनुसार किसी देश ने किस सीमा तक जलवायु परिवर्तन में योगदान दिया है और जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए उसकी कितनी क्षमताएं हैं, इस बात को संज्ञान में लिया जाता है। अंतरिक्ष में कचरा जमा होने से सभी अंतरिक्ष गतिविधियां प्रभावित होती हैं। उन राष्ट्रों की योजनाएं बेकार हो सकती हैं, जिनके पास अभी तक अंतरिक्ष गतिविधियों में संलग्न होने के लिए संसाधन नहीं हैं। विद्वानों ने अतीत से लेकर अब तक इस बात पर विचार किया है कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग और निर्णय प्रक्रिया में किस तरह समन्वय किया जाए।