इस्लामाबाद : संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज होने के बाद से सरेआम मौत की सजा देने, कोड़े और पत्थर मारने की सजा पर तालिबान रोक लगाए. संयुक्त राष्ट्र ने तालिबान शासन द्वारा सरेआम मौत की सजा देने, कोड़ा और पत्थर मारने की सजा देने के मामले पर कड़ी आलोचना की है. उसने ऐसी सजा पर पाबंदी लगाने की मांग की है.
अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (यूएनएएमए) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले छह महीने में ही अफगानिस्तान में सरेआम करीब 274 पुरुषों, 58 महिलाओं और दो लड़कों को कोड़े मारने की सजा दी गई. यूएनएएमए की मानवाधिकार प्रमुख फियोना फ्रेजर ने कहा कि शारीरिक दंड देना, प्रताड़ना के खिलाफ समझौते का उल्लंघन है और इसे रोका जाना चाहिए. उन्होंने मौत की सजा पर तत्काल पाबंदी की मांग की है.
अफगान में दो कानूनों के बीच टकराव
उधर, तालिबान के विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि अफगानिस्तान के कानून इस्लामी नियमों और दिशानिर्देशों के अनुरूप है और बड़ी संख्या में अफगान नागरिक इन नियमों को मानते हैं. मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून और इस्लामी कानून के बीच टकराव की स्थिति में सरकार इस्लामी कानून का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है.
वादाखिलाफी कर रहा तालिबान
गौरतलब है कि तालिबान ने करीब दो साल पहले अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज होने के कुछ ही समय बाद इस तरह की सजा देना शुरू कर दिया था. हालांकि, उसने 1990 के दशक के अपने पहले कार्यकाल की तुलना में अधिक उदार नियम अपनाने का वादा किया था.
अगस्त 2021 में कोड़े मारने की पहली सजा
संयुक्त राष्ट्र की सोमवार को जारी रिपोर्ट में अगस्त 2021 में सत्ता में आने से पहले और बाद दोनों समय तालिबानी गतिविधियों का विवरण प्रस्तुत किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के सत्ता में आने के बाद सरेआम कोड़े मारने की पहली सजा अक्टूबर 2021 में उत्तरी कापिसा प्रांत में दी गई. रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में व्यभिचार के दोषी एक महिला और पुरुष को मौलवियों और स्थानीय अधिकारियों की मौजूदगी में 100-100 कोड़े मारे गए थे.
दिसंबर 2022 में सरेआम मौत की सजा
तालिबान के ओहदेदारों ने दिसंबर 2022 में हत्या के एक दोषी को मौत की सजा दी. रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद सरेआम मौत की सजा का यह पहला मामला था. पीड़ित के पिता की राइफल से ही इस सजा को अंजाम दिया गया. यह मौलवियों और तालिबान अधिकारियों के सामने पश्चिमी फराह प्रांत में हुआ.
सोच-समझकर दी गई सजा
सरकार के शीर्ष प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने कहा कि सजा देने का फैसला बहुत सोच-समझकर किया गया और इसे देश की तीन सर्वोच्च अदालतों तथा तालिबान के सर्वोच्च नेता मुल्ला हिबातुल्ला अखुंदजादा की मंजूरी थी.