बीजिंग: 9 दिसंबर को चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (PLA) के सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग में गुस्ताखी की। यहां करीब 300 चीनी सैनिकों ने हमला बोल दिया और एक बार फिर एलएसी पर टकराव हुआ। जून 2020 के बाद पहली बार था जब चीन ने यह हिमाकत की। उस समय भी पूर्वी लद्दाख के गलवान में चीन के सैनिकों को भारतीय सेना ने पटखनी दी थी। चीन को नहीं भूलना चाहिए कि सन् 1967 से ही भारतीय सेना उसे शिकस्त देने में सक्षम है। सितंबर 1967 को सिक्किम के नाथू ला में हुआ टकराव इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज सेना की वह गौरव गाथा है जो आपको जोश से भर देगी। उस झड़प में चीनी सेना के करीब 400 सैनिकों की मौत हुई थी। सिर्फ इतना ही नहीं चीनी सेना ने तो अपने सैनिकों के शव लेने तक में आनकानी की थी।
1962 में जब भारत को चीन के हाथों हार का सामना करना पड़ा तो हर कोई गहरे गम में डूब गया। लेकिन सेना ने अपना मनोबल गिरने नहीं दिया और वह हर पल मुस्तैद रहने लगी। भारतीय सेना जानती थी कि चीन शांत नहीं बैठेगा और जरूर कोई हिमाकत करेगा। पंचशील सिद्धांत के साथ ही चीन की आक्रामकता बढ़ती गई। 1962 में मिली जीत के बाद तो चीन और आक्रामक हो गया।
सितंबर 1967 में सिक्किम के नाथू ला में भारत और चीन के सैनिकों के बीच टकराव हुआ। यह टकराव जंग के पांच साल बाद सबसे ज्यादा डराने वाला था। इस टकराव में भारत के जहां 88 सैनिक शहीद हुए तो चीन के करीब 340 सैनिक मारे गए थे। चीन को यह बात नागवार थी कि भारतीय सेना के सैनिक सिक्किम में तैनात थे। सिक्किम की सीमा उत्तर और उत्तर पूर्व में तिब्बत, पूर्व में भूटान और पश्चिम में नेपाल और दक्षिण में पश्चिम बंगाल से सटी है।
20 अगस्त 1967 को भारत ने सीमा पर कंटीले तारों की तीन स्तरीय घेराबंदी का काम शुरू किया। 23 अगस्त 1967 को चीनी सैनिक नाथू ला तक आ गए। इनके हाथ में राइफल्स थीं। इन सैनिकों को बॉर्डर पर ही रोक दिया गया था। इस दौरान एक अधिकारी ने एक किताब से कुछ नारों को पढ़ना शुरू किया जबकि बाकी लोग उसके साथ चिल्ला रहे थे। एक घंटे बाद चीनी जवान चले गए लेकिन वो वापस आए और विरोध प्रदर्शन करने लगे। पांच सितंबर 1967 को भारत ने कंटील तारों को लगाने का काम दोबारा शुरू किया। इस बार चीन के एक राजनेता भी विवाद में कूद पड़े। उन्होंने उस समय के कमांडिंग ऑफिसर ले. कर्नल राय सिंह के साथ जमकर बहस की। इसके बाद काम रोक दिया गया।
7 सितंबर को काम दोबारा शुरू किया गया और इस बार चीनी सेना भड़क गई। करीब 100 चीनी सैनिक, भारतीय सैनिकों से उलझ गए। सेना ने इन्हें जमकर पीटा। चीनी सैनिकों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी थी और भारत की तरफ से इसका मुंहतोड़ जवाब दिया गया। 10 सितंबर को चीन की तरफ से भारतीय दूतावास को धमकी दी गई थी कि अगर भारतीय सेना भड़काऊ कार्रवाई के तहत घुसपैठ करती रहेगी तो फिर किसी भी अंजाम के लिए भारत सरकार जिम्मेदार होगी।
11 सितंबर 1967 को यह काम पूरा हो जाना था। जैसे ही काम शुरू हुआ चीनी सेना जिसका नेतृत्व राजनीतिक ऑफिसर कर रहे थे, उसने विरोध शुरू कर दिया। कमांडिंग ऑफिसर ले. कर्नल राय सिंह, उनसे बातचीत करने के लिए गए। जैसे ही कर्नल राय सिंह बाहर आए, चीनी सैनिकों ने फायरिंग शुरू कर दी। ले. कर्नल जमीन पर ही गिर पड़े। इसके बाद इंफ्रेंट्री ब्रिगेड ने चीनी चौकी पर हमला कर दिया। चीनी सेना ने मशीन गन से गोलियां बरसानी शुरू की और भारत की तरफ से तोप से फायरिंग हुई।
भारत के तगड़े प्रहार के बाद चीनी सेना को पीछे हटना पड़ा। 13 सितंबर को चीनी जवानों की तरफ से बिना शर्त युद्धविराम की पेशकश की गई। सुबह 5:30 बजे सिक्किम-तिब्बत बॉर्डर पर यह युद्धविराम शुरू हुआ था। 15 सितंबर को चीनी जवानों ने उन भारतीय सैनिकों के शव सौंपे जो शहीद हो गए। साथ ही हथियार और गोला बारूद भी वापस कर दिया। इसके बाद तो चीन शांति और भारत के साथ दोस्ती की भाषा बोलने लगा। 1 अक्टूबर को चोला पास पर फिर से झड़प हुई। यह जगह नाथू ला से बस कुछ ही दूरी पर है। लेकिन इस बार भी भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों को बेबस कर दिया था।