रोजमर्रा के जीवन में व्यवहार में आने वाली बैटरी से निकलते इलेक्ट्रोलाइट पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदायक हैं. एक बैटरी को मिट्टी में मिलने में 300 साल से ज्यादा लगते हैं. इससे मिट्टी विषैली हो जाती है. साथ ही हमारी धरती बंजर भी हो जाती है. इसके विकल्प की खोज कर रहे ओडिशा के युवा वैज्ञानिक दिव्यराज बरिहा को बड़ी सफलता मिली है. इसे लेकर उन्होंने जैविक इलेक्ट्रोलाइट अथवा जैविक बैटरी बनाने में सफलता हासिल की है.
पर्यावरण अनुकूल है दिव्यराज बरिहा की जैविक बैटरी
यह जैविक बैटरी पर्यावरण के अनुकूल है और बेकार होने पर मिट्टी में आसानी से मिल जाती है. दिव्यराज ने अपने फार्म हाउस में उपजी काली हल्दी से जैविक बैटरी बनायी है. दिव्यराज ने इलेक्ट्रोलाइट की जगह काली हल्दी और जैविक मिश्रण का उपयोग कर एलेट्रोलाइट तैयार किया है और इससे इलेक्ट्रिक एनर्जी तैयार करते है. दिव्यराज ने खाली डिब्बे में मिश्रण तैयार कर ऊर्जा में तब्दील करते हैं. आगे चलकर बायो प्लास्टिक कवर का इस्तेमाल करने का लक्ष्य रखा है.
जैविक मिश्रण में बरगद, पीपल व अन्य पेड़ के बीज का उपयोग
इस जैविक मिश्रण में बरगद, पीपल व अन्य पेड़ के बीज का भी उपयोग किया जा रहा है. ओडिशा के दिव्यराज ने बताया कि बैटरी बेकार होने पर इसे मिट्टी में डालने से इसमें संरक्षित बीज अंकुरित होकर परिवेश को हरा-भरा बनाने में सहायक होगा. दिव्यराज ने बताया पांच से सात जून तक देश की राजधानी दिल्ली में होने वाली बायो डिग्रेडेबल एक्सपो 2023 में वे अपनी जैविक बैटरी को प्रदर्शित करेंगे. युवा वैज्ञानिक दिव्यराज बरिहा ने नयी-नयी प्रजाति की फसलों की खेती, जैविक अनुसंधान कर अंचल में अपनी एक खास पहचान बनायी है.
दिव्यराज बरिहा ने खेती में किये हैं कई प्रयोग
दिव्यराज ने काला चावल, काली गेहूं, काली हल्दी, काली अदरक, कश्मीरी केशर, लखटकिया मशरूम, मोती बनाने, बायोफ्लेक्स मछली पालन, रंग-बिरंगी तरबूज समेत अन्य कई प्रकार की सफल खेती कर चुके हैं और अन्य किसानों को भी प्रेरित करते हैं. संबलपुर जिला कुलुथकानी गांव में पले-बढ़े दिव्यराज ने खंडुआल स्थित अपने फार्म हाउस में खेती के नये-नये प्रयोग कर रहे हैं. एक सफल किसान के तौर पर अपनी पहचान बनायी है.