कायोत्सर्ग से होता है भीतरी शक्ति का जागरण -मुनि प्रशांत
जोरहाट (वर्धमान जैन): मुनिश्री प्रशांत कुमारजी मुनिश्री कुमुद कुमारजी के सान्निध्य में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल द्वारा निर्देशित कार्यशाला “शक्ति और शांति की ओर” जोरहाट महिला मंडल के नेतृत्व में आयोजित हुई। जनसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री प्रशांत कुमार जी ने कहा – ध्यान की विधि प्रभु महावीर द्वारा प्रदत्त है। भगवान महावीर स्वयं घंटों- घंटों कायोत्सर्ग का प्रयोग करते थे। कायोत्सर्ग से आत्मबल एवं एकाग्रता बढ़ती है। आत्मा एवं शरीर की भिन्नता का अनुभव होता है। आत्मा- शरीर की भिन्नता का यह प्रयोग कायोत्सर्ग अन्य किसी ध्यान पद्धति में नहीं मिलेगा। भिन्नता का प्रयोग करने से व्यक्ति भीतरी चेतना से जुड़ता है। कायोत्सर्ग से हमारे भीतर कई तरह की शक्ति का जागरण होता है। शरीर में रहते हुए भी शरीर से मुक्त होना ही कायोत्सर्ग है।
अपने आप में यह महत्वपूर्ण प्रयोग है। हम कायोत्सर्ग में जब होते हैं तब कर्मों के बीज को मन, वचन, काया का सहयोग नहीं मिलता है। शारीरिक बीमारियां, मानसिक एवं भावनात्मक समस्या कायोत्सर्ग से दूर होती है। यह एक वैज्ञानिक पद्धति है। गहराई से अभ्यास करने से हमें इसका बड़ा लाभ मिल सकता है। तनाव – डिप्रेशन इत्यादि कितनी बीमारियां दूर होती है। आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने प्राचीन पद्धति को आधुनिक रूप से प्रेक्षा ध्यान से जोड़ा। इस प्रयोग से आत्मा का वास्तविक स्वरूप में व्यक्ति अवस्थित होता है। आत्मा के स्वभाव को जानता है। प्रतिदिन कायोत्सर्ग का अभ्यास करना चाहिए जिससे भेद- विज्ञान का अनुभव करके वास्तविक शक्ति और शांति को प्राप्त कर सकें।
मुनिश्री कुमुद कुमार जी ने कहा – शक्ति और शांति के लिए हमें कही और जाने की अपेक्षा नहीं है। दोनों हमारे भीतर है। ध्यान का प्रयोग करने से हमारी लेश्या बदलती है।लेश्या बदलने से हमारी भावधारा में परिवर्तन आता है। व्यक्ति के जीवन व्यवहार में बदलाव आता है। ध्यान का अर्थ होता है मन, वचन, काया की स्थिरता। बाहरी दुनिया से हमारी चेतना भीतरी तत्व- आत्मा के साथ जुड जाए। कायोत्सर्ग के अभ्यास के द्वारा व्यक्ति जीवन का वास्तविक परमानंद को प्राप्त कर सकता है। अशांत मन वाला व्यक्ति कई समस्याओं को पैदा कर देता है। कायोत्सर्ग आत्मजागृति की प्रक्रिया है।
कार्यशाला का शुभारंभ मधु पिंचा के मंगलाचरण से हुआ। महिला मंडल अध्यक्षा श्रीमती मनुजा पिंचा ने विचारों की अभिव्यक्ति दी। आभार श्रीमती सरोज भंसाली ने व्यक्त किया।कार्यशाला का संचालन श्रीमती स्मिता बैद ने किया।