गुणगान ही नहीं अनुसरण भी करें -मुनि प्रशांत
सिलीगुड़ी (वर्धमान जैन): मुनि प्रशांत कुमार जी, मुनि कुमुद कुमार जी के सान्निध्य में 221 वां आचार्य श्री भिक्षु चरमोत्सव मनाया गया। जनसभा को संबोधित करते हुए मुनि प्रशांत कुमार जी ने कहा – आचार्य भिक्षु महान सत्य शोधक आचार्य थे। शुद्ध साधुत्व का पालन करना और जनता को भी धर्म का शुद्ध स्वरूप बतलाना उनका मुख्य ध्येय था। उन्होंने 260 वर्ष पूर्व जो धर्मक्रांति की थी उसके फलस्वरूप उन्हें भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ा। अपने समय में धर्म के बारे में चल रही भ्रांतियों और मिथ्या मान्यताओं का उन्होंने खुलकर प्रतिकार किया जिसे तात्कालीन धार्मिक लोग सहन नहीं कर सकें। आचार्य भिक्षु ने बताया -जहां हिंसा है वहां धर्म नही हो सकता। त्याग धर्म भोग अधर्म। भगवान की आज्ञा में धर्म अनाज्ञा में अधर्म। भगवान महावीर स्वामी की वाणी के आधार पर ही धर्म का शुद्ध स्वरूप बताया। तेरापंथ संघ का प्रवर्तन कर उन्होंने अनुशासन को सर्वाधिक महत्व दिया और मर्यादा, व्यवस्था , संगठन का निर्माण किया। आचरण और अनुशासन की नींव से तेरापंथ को खड़ा किया। भगवान महावीर स्वामी के सिद्धांत को आत्मसात् किया और उन्हें परिभाषित कर साधना का मार्ग प्रशस्त किया। भिक्षु स्वामी का गुणगान ही नहीं बल्कि अनुसरण भी करें।
मुनि श्री कुमुद कुमार जी ने कहा- आचार्य श्री भिक्षु ने सत्य के लिए बहुत तप तपा।उन्हें सत्य के लिए मरना भी मंजूर था। शुद्ध साधना का पथ अपनाया लेकिन विरोध से कभी डरें नही। सम्प्रदाय का मोह, पद की लालसा एवं कठिनाइयों से कभी विचलित नही हुए। उनका चिंतन था धार्मिकता व्यक्ति के व्यवहार में भी होनी चाहिए। सत्य को यथार्थ रुप में स्वीकार करने वाला ही धार्मिक जीवन जी सकता है। भिक्षु विचार दर्शन आचार्य श्री भिक्षु के सिद्धांतों को जानने के लिए सशक्त ग्रंथ है जिसमें भगवान महावीर स्वामी के दर्शन को युगानुरुप प्रस्तुत किया गया। तेरापंथ सभा अध्यक्ष रुपचंद कोठारी, तेरापंथ युवक परिषद अध्यक्ष नरेश धाडेवा,टीपीएफ से सुरेन्द्र छाजेड, अणुव्रत समिति से हडुमान मालू, तेरापंथ महिला मण्डल ने गीत एवं व्यक्तव्य के द्वारा आचार्य श्री भिक्षु के प्रति भावांजलि अर्पित की।