नई दिल्ली : राजस्थान में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इससे पहले कांग्रेस में एक बार फिर संकट के बादल छाने लगे हैं. जी हां…साल 2019 के पुलवामा हमले में शहीद जवानों की वीरांगनाओं द्वारा किये जा रहे प्रदर्शन को लेकर राजस्थान की अशोक गहलोत नीत सरकार पर पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने जोरदार हमला किया है. पायलट ने शुक्रवार को कहा कि अहम को किनारे रखकर उनकी बात सुनी जानी चाहिए.
यहां चर्चा कर दें कि इससे पहले प्रदर्शन कर रही तीन जवानों की वीरांगनाओं को शुक्रवार तड़के यहां कांग्रेस नेता सचिन पायलट के घर के बाहर प्रदर्शन स्थल से हटा दिया गया था. पुलिस ने उन्हें उनके आवासीय क्षेत्रों के पास के अस्पतालों में स्थानांतरित कर दिया. ये वीरांगनाएं 28 फरवरी से प्रदर्शन कर रही हैं और इन्होंने नियमों में बदलाव की मांग करते हुए छह दिन पहले अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी थी ताकि न सिर्फ उनके बच्चों बल्कि उनके रिश्तेदारों को भी अनुकंपा के आधार पर सरकारी नौकरी मिल सके.
वीरांगनाओं की अन्य मांगों में सड़कों का निर्माण और उनके गांवों में शहीदों की प्रतिमाएं लगाना शामिल है. पुलिस कार्रवाई पर प्रतिक्रिया देते हुए टोंक में पायलट ने मीडिया से बात की और कहा कि वीरांगनाओं के मामले को संवेदनशीलता के साथ सुना जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि मेरा आज भी मानना है कि हम सड़क निर्माण, घर निर्माण और प्रतिमा लगाने की उनकी मांग पूरी कर सकते हैं. यह संदेश नहीं जाना चाहिए कि हम वीरांगनाओं की मांगों को सुनने के लिए तैयार नहीं है. यह अलग बात है कि हम उनपर सहमत होते हैं या नहीं, लेकिन अहम को किनारे रखकर उनकी मांगों को सुना जाना चाहिए.
कुछ दिन पहले सीएम गहलोत ने कहा था कि क्या हमें वीरांगनाओं के सामने एक ऐसी मुश्किल परिस्थिति खड़ी करनी चाहिए क्योंकि वर्तमान में बनाये गये नियम पूर्व के अनुभवों के आधार पर ही बनाये गये हैं. शहीदों के बच्चों का हक मारकर किसी अन्य रिश्तेदार को नौकरी देना कैसे उचित ठहराया जा सकता है? जब शहीद के बच्चे बालिग होंगे तो उन बच्चों का क्या होगा? उनका हक मारना उचित है क्या? उन्होंने कहा कि राजस्थान सरकार ने प्रावधान किया है कि यदि शहादत के वक्त वीरांगना गर्भवती है एवं वह नौकरी नहीं करना चाहे तो गर्भस्थ शिशु के लिए नौकरी सुरक्षित रखी जाएगी जिससे उसका भविष्य सुरक्षित हो सके.