बेलपत्र के विषय में लोगों का यह विश्वास है कि जो मनुष्य पवित्र मन से भगवान शिव को दो या तीन बेलपत्र अर्पित करता है, वो भवसागर से मुक्त हो जाता है। ऐसा भी मानते हैं कि भगवान शिव को अखंडित बेलपत्र चढ़ाने वाला भक्त मृत्यु के पश्चात भगवान शिव के धाम चला जाता है।
बेलपत्र के महत्त्व के विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण एक पौराणिक प्रसंग है। प्राचीन काल में एक बार देवताओं और दानवों दोनों ने मिलकर सागर मंथन किया था। सागर मंथन के दौरान समुद्र से कई चीजें निकली। इनमे से कुछ अच्छी थीं और कुछ बुरी। इसी मंथन के फलस्वरूप समुद्र से हलाहल नामक विष भी निकल आया जो इतना भयानक विष था कि इसके प्रभाव से पूरे संसार का विनाश हो सकता था। इस विष से संसार की रक्षा के लिए भगवान शिव ने इस विष को पी लिया और यह विष उनके कंठ में रह गया, इसलिए उनका एक नाम नीलकंठ भी हो गया। इस विष के प्रभाव से भगवान शिव का मस्तिष्क गर्म हो गया और वो बेचैन हो उठे। देवताओं ने उनके सर पर जल उड़ेला तो उनके सर की जलन तो दूर हो गयी लेकिन कंठ की जलन बनी रही। इसके बाद देवताओं ने उन्हें बेलपत्र खिलाना शुरू किया क्योंकि बेलपत्र में विष के प्रभाव को ख़त्म कर देने का गुण होता है| इसीलिए शिव की पूजा में बेलपत्र का विशेष महत्त्व है।
बेलपत्र के महत्त्व के विषय में एक कथा शिवरात्रि से भी जुड़ी हुई है। प्रसंग यह है कि एक बार एक भील शिवरात्री की रात को अपने घर नहीं जा पाता है और पूरी रात एक बिल्व के वृक्ष पर बिता देता है। उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग होता है और पेड़ पर सोते-सोते उस भील के हाथों बार-बार बेलपत्र टूटकर उस शिवलिंग पर गिरते रहते हैं। सुबह जैसे ही उस भील के नींद टूटती है, उसे भगवान शिव का साक्षात् दर्शन प्राप्त होता है। भगवान शिव उससे कहते हैं कि उसने पूरी रात उन्हें बिल्वपत्र चढ़ाकर प्रसन्न कर दिया है। इसलिए वो उसे सुख-संपत्ति का वरदान देते हैं। तभी से भक्त भगवान शिव की उपासना के लिए बेलपत्र विशेष रूप से चढ़ाने लगे।