जप एवं तप से दूर होते कर्म- मुनि प्रशांत
कांटाबांजी (बर्धमान जैन): मुनि श्री प्रशांत कुमार जी एवं मुनि श्री कुमुद कुमार जी की प्रेरणा प्रयास से तेरापंथ युवक परिषद के आयोजन में सामूहिक एकासन तप साधना के साथ मंत्र अनुष्ठान का आयोजन हुआ। साधकों को सम्बोधित करते हुए मुनि प्रशांत कुमार जी ने कहा- आध्यात्मिक जीवन में कर्म बंध एवं निर्जरा का क्रम चलता है । कर्मों को दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार से साधना करनी चाहिए ।आध्यात्मिकता से कर्म की निर्जरा होती है । अन्तराय दूर होती है । अन्तराय कर्म हल्के होने से जीवन में उपलब्धि मिल जाती है ।
कुण्डली में योग होने पर भी कई बार को चाहा वो नही मिला क्योंकि अंतराय कर्म गहरा है । अन्तराय कर्म के उदय के कारण से व्यक्ति के जीवन में अनेक प्रकार की समस्याएं आती रहती है । जीवन में अशांति बनी रहती है । जप,ध्यान एवं तपस्या से कई कर्म दूर होते हैं । वेदनीय कर्म ज्ञानावरणीय कर्म हल्के होते हैं । भगवान महावीर ने साधना के अनेक प्रयोग बताएं । भगवान ने स्वयं विभिन्न प्रयोगों से अपने प्रबल कर्मो को क्षय किया । कर्मों को हल्का करने के लिए आध्यात्मिक साधना करनी चाहिए जप, तप एवं ध्यान के द्वारा अपनी आत्मा को उज्ज्वल बना सकते हैं । तपस्या के विभिन्न प्रकारों में सबसे छोटा तप नवकारसी होता है । श्रावक को प्रतिदिन एक त्याग अवश्य करना चाहिए | त्याग करने से मन पर संयम सधता है । त्याग करने की भावना हमारी आसक्ति को भी कम करती है। त्याग करने से ही लाभ मिलता है । बिना त्याग कर्मों की निर्जरा नही होती है । संकल्पपूर्वक त्याग करने से मनोबल एवं आत्मबल बलवान बनता है । जीवन में छोटे – छोटे त्याग करते रहना चाहिए | रात्रिभोजन त्याग का भी अपना बहुत महत्व रहा है । त्याग के साथ जप एवं ध्यान के प्रयोग साधना को और विकसित करती है । एकासन के साथ मंत्र का जप होने से भाव शुद्धि गहरी बनती है ।
मुनि कुमुद कुमार जी ने कहा- शरीर बल , बुद्धिबल से अधिक महत्वपूर्ण होता है आत्मबल । आत्मबल जागृत होता है जप एवं तप के द्वारा । जप मे खपना पड़ता है । तप में तपना होता है । जप के साथ तप का योग होने से जपअधिक शक्तिशाली बन जाता है । जैन धर्म में साधना का बहुत महत्व रहा है । साधना से व्यक्ति के जीवन की अनेक समस्याओं से मुक्ति मिलने के साथ भीतर की शक्ति आभामण्डल को पवित्र बनाती है । व्यक्ति अपनी क्षमता को जागृत कर जप तप एवं ध्यान का प्रयोग करता जाए जिससे आंतरिक भावो की शुद्धि होती है । मंत्र आराधना के लिए जरूरी होता है मन की एकाग्रता , श्रद्धा का उत्कृष्ट भाव जिससे जप का असर हमारे व्यवहार आदत एवं विचारो पर होता है। मीडिया प्रभारी अविनाश जैन ने बताया 250 साधकों ने मंत्र,अनुष्ठान एवं एकासन की साधना की ।
कांटाबांजी में पहली बार तेरापंथ युवक परिषद के आयोजन में सामूहिक एकासन का आयोजन मंत्र अनुष्ठान के साथ हो रहा है । तेरापंथ युवक परिषद उपाध्यक्ष दीपक जैन ने विचार प्रस्तुत किए । एकासन एवं मंत्र अनुष्ठान ऋषभ जैन एवं बिमल जैन के कुशल संयोजन में आयोजित हुआ। तेरापंथ युवक परिषद अध्यक्ष अंकित जैन ने सभी आभार व्यक्त किया ।