कुछ नहीं हुआ ?
न रंग लगा
न गीत बजा
न फागुनी कविता बनी ।
कुछ नहीं हुआ
न वंशी का स्वर सजा
न और तनिक ऊंचे दिखे
ठेले पेले हुए शब्द सारे
न आंचल में
ममता खिली
न चांदनी रात में
दिखे तारे
तारों के बीच
न दिखी चांदनी रात ।
अब नाम लेने से
कितने मुंह खुल जाते हैं
कुछ नहीं हुआ
न इधर उधर
उड़ते परिंदे
डाल पर बैठे
न लिखी जा सकी कविता !
✍🏾मूल ओड़िआ: प्रफुल्ल चंद्र पाढ़ी
कोलनारा, रायगडा ज़िला
मो_ 8917324525
✒️अनुवाद: ज्योति शंकर पण्डा
शरत, मयूरभंज