पटना: 2018 के सितंबर माह से प्रधानमंत्री द्वारा पहली बार राष्ट्रीय पोषण माह की शुरुआत की गयी थी। देश भर से कुपोषण खत्म करने की दिशा मे शुरूआत किये गए राष्ट्रीय पोषण मिशन के तहत ही तृतीय पोषण माह आयोजित किया गया है। यद्यपि, कोरोना संक्रमण के कारण पोषण माह का आयोजन चुनौतिपूर्ण है, लेकिन सभी सहयोगी विभागों के समन्वय से इसे आसान बनाया जा सकता है। उक्त बातें समाज कल्याण मंत्री, बिहार सरकार, राम सेवक सिंह ने बुधवार को आई.सी.डी.एस द्वारा आयोजित पोषण माह कार्यक्रम के वर्चुअल शुभारम्भ के दौरान कही। उन्होंने कहा कि कुपोषण को दूर करने के लिए पोषण गतिविधियों जैसे अन्नप्राशन, गोदभराई एवं टेक होम राशन वितरण से समुदाय में पोषण को लेकर जागरूकता बढ़ी है।
राम सेवक सिंह ने बताया कि पोषण से जुड़ी गतिविधियों के आयोजनों को पंचायत स्तर पर आयोजित करने से आम लोगों के बीच पोषण को लेकर जागरूकता बढ़ेगी एवं पोषण उद्देश्यों को हासिल करने में सफ़लता भी मिलेगी। उन्होंने कहा कि शौचालय के इस्तेमाल एवं साफ़-सफ़ाई की जरूरत पर विभिन्न जागरूकता माध्यमों से समुदाय में जानकारी देने से सकारात्मक बदलाव भी समाज में देखने को मिल रहे हैं। इसलिए यह जरुरी है कि पोषण माह के दौरान राज्य एवं भारत सरकार द्वारा संचालित किये जा रहे पोषण कार्यक्रमों के उद्देश्य के विषय में समुदाय को जागरूक किया जाए। उन्होंने कहा कि समुदाय को पोषण सन्देश सरल भाषा में दें ताकि लोग इसे समझ सके और उसका अनुपालन कर सकें।
कार्यक्रम के दौरान अपर मुख्य सचिव, समाज कल्याण मंत्रालय, अतुल प्रसाद ने बताया कि पोषण माह का यह तीसरा साल है। इसलिए विगत दो बार के पोषण माह से कई चीजें सीखने को मिली है, जिसे इस बार के पोषण में क्रियान्वित करने की जरूरत है। उन्होंने पोषण अभियान के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए 3 लक्षित समूहों पर ध्यान देने की बात कही, जिसमें 16 से 18 साल की स्कूल नहीं जाने वाली किशोरियाँ, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के लाभार्थी एवं जन्म से लेकर 2 साल तक के बच्चों के पोषण एवं स्वास्थ्य पर फोकस करने पर बल दिया। उन्होंने बताया कि एक तरफ बिहार के लिए कुपोषण एक चुनौती है, वहीं दूसरी तरफ यह एक अवसर भी है। उन्होंने आईसीडीएस के सभी कर्मियों को मिशन मोड एवं रिजल्ट ओरिएंटेड मोड पर कार्य करने की सलाह दी। उन्होंने लोकल खाद्य व्यंजनों की चार्ट बनाकर लाभर्थियों को देने की बात भी कही। साथ ही स्वच्छता पर समुदाय को जागरूक करने की जरूरत पर बल दिया, ताकि बच्चे लगातार डायरिया जैसे रोग से ग्रसित होकर कुपोषित न हो जाए। इसके लिए उन्होंने समुदाय के व्यवहार परिवर्तन पर कार्य करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि दो साल पहले जन्म लिए बच्चे एवं नए जन्म लेने वाले बच्चों की बेहतर निगरानी से उन्हें कुपोषण के दंश से बचाया जा सकता है।
पटना से रामजी प्रसाद की रिपोर्ट Yadu News Nation