आत्म कल्याण करने का महान रास्ता संथारा -मुनि प्रशांत
चंगड़ा बांधा (वर्धमान जैन): संथारा साधक अभयराज जी सुराणा के निवास पर प्रवचन करते हुए मुनिश्री प्रशांत कुमार जी ने कहा – भगवान महावीर स्वामी ने धर्म के दस द्वार बताएं। उनके माध्यम से व्यक्ति धर्म में प्रवेश करता है।हम अपने जीवन में क्षमा का विकास करें। लाखों करोड़ों वर्षों से क्षमा का यह सूत्र चला आ रहा है। भगवान महावीर स्वामी ने फरमाया हम इसे जीवन व्यवहार में लाएं तभी आत्मा नि:शल्य बनेगी। किसी के प्रति वैर का भाव न रखें। इसे जितना जल्दी हो उसे दूर करें क्योंकि इस भाव के साथ अगर मरण हो जाए तो व्यक्ति जन्मों जन्मों तक भटकता रहता है। संथारे में भी हर समय क्षमा का भाव रहना चाहिए। समत्व की साधना से मन को हल्का बना लेना चाहिए। अभयराज जी सुराणा ने हिम्मत का कार्य किया है।संथारा आत्म कल्याण करने का महान रास्ता है।संथारा एवं आत्महत्या में दिन-रात जितना फर्क है। आत्महत्या अंधेरा है,तो संथारा उजाला है, आत्मा को चमकाने वाला है। संथारा करने वाला भय, निराशा, क्रोध से मुक्त होकर आत्मा को निर्मल पवित्र बनाता है। आत्म उच्च भाव में होती है।खाने पीने की आसक्ति को छोड़कर परमात्मा के साथ सीधा संबंध जुड़ जाता है। अरिहंत, सिद्ध परमात्मा की शरण लेनी चाहिए। आध्यात्मिकता में ध्यान लगाएं जिससे आत्मा आत्मकल्याण के रास्ते पर आगे बढ़े। जीवन में संथारा भी सौभाग्य से आता है।
मुनिश्री कुमुद कुमार जी ने कहा- श्रावक के तीन मनोरथ होते है। प्रत्येक श्रावक प्रतिदिन इनका आत्म चिंतन करता रहे।श्रावक जीवन में विवेक, जागरूकता होनी बहुत जरूरी है। करणीय को अपना कर आध्यात्मिकता का जीवन जिएं।आत्मा जितनी कर्मों के बंधन से बचती रहे उतनी ही हलुकर्मी बनती है। मनुष्य जीवन का उपयोग पदार्थ, संसारिक जीवन में नहीं लगे अपितु आत्म चिंतन, त्याग चेतना को जगाने में लगे। जिससे हमारी चेतना में आध्यात्मिक भाव बनें रहें।संथारा करने वाले अभयराज जी शरीर, पदार्थ एवं पारिवारिक जनों की आसक्ति को छोड़कर आत्मा के साथ जुड़े हुए है। उनकी चेतना जागृत बनी रहे। आत्म कल्याण की ओर आगे बढ़ते रहे। आत्मा के साथ जुड़ाव हो जाए तो आत्मा भिन्न शरीर भिन्न का जो बोध होता है उससे कितने ही कर्मों का क्षय हो जाता है। विजय सिंह बरडिया, श्रीमती सिम्पल बरडिया, श्रीमती बीणा सुराणा ने विचारों की अभिव्यक्ति दी।