जमशेदपुर: “स्त्री ही प्रेम है , श्रृंगार हैं , जीवन है। उनसे ही सारी व्यवस्थाएं तय होती है। स्त्री अगर परिवार को पढ़ाती है, तो उसके दिमाग में पूरा समाज होता है। आज वह जमाना गया, जब स्त्री सिर्फ पीड़ा लिखती है। आज वह अबला और आंसू से आगे बढ़ कर आसमान नाप रहीं है।” उपरोक्त शब्द वरिष्ठ साहित्यकार ममता कालिया की हैं। वे श्रीनाथ विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय हिंदी महोत्सव के दूसरे दिन पर अपना उद्गार व्यक्त कर रहीं थी। उन्होंने कहा कि पूर्व की स्त्री लेखन को अगर आप पढ़ेंगे तो उसमें स्त्री को अबला, आंसू, दुखयारी पेश किया जाता रहा है। देश के कई प्रतिष्ठित लेखक और कवि कार्यक्रम में शामिल हुए। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप मैं सरायकेला – खरसावां के उपायुक्त रविशंकर शुक्ला मौजूद रहे। इससे पहले चिंतन – मनन सत्र की समन्वयक डॉ संध्या सिन्हा एवं रचना रश्मि थीं। इस अवसर पर महिला विश्वविद्यालय के इग्नू के समन्वयक तथा वरिष्ठ लेखिका डॉ. त्रिपुरा झा को विशेष सम्मान से नवाजा गया।