नई दिल्ली: किसानों का भ्रम तो केंद्र सरकार नहीं तोड़ सकी, लेकिन अब किसान संगठन, सत्ता में बैठे लोगों का भ्रम जरूर तोड़ देंगे। आठ पन्ने छपवा कर कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर देश के किसानों को बरगलाने चले थे। अब उनके पत्र का जवाब दिया जाएगा। यह दावा किसान नेताओं ने किया है।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वरिष्ठ पदाधिकारी डॉक्टर सुनीलम कहते हैं, आंदोलन कर रहे पांच सौ किसान संगठनों में से 22 दिन में एक भी नहीं हिला। किसी ने राजनीतिक दबाव नहीं माना। कोई नहीं टूटा और सबसे बड़ी बात, एक भी संगठन ने रेखा पार नहीं की। ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के अध्यक्ष सत्यवान के अनुसार, सरकार के आठ पन्नों वाले पत्र का जवाब दिया जाएगा। इसके लिए किसान संगठन भी अपना संयुक्त खंडन पत्र तैयार कर रहे हैं। इसमें सरकार के झूठ की पोल खोली जाएगी। केंद्र सरकार का भ्रम तोड़ने के लिए किसान संगठनों ने कमर कस ली है। अब दुनिया किसान आंदोलन की धार देखेगी।
डॉ. सुनीलम ने बताया, केंद्र सरकार और विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब समझ रहे हैं कि किसान आंदोलन को हल्के में लेना ठीक नहीं रहा। उन्हें ये ज्ञात हो चुका है कि किसानों का मामला अहंकार से हल नहीं हो सकता। प्रधानमंत्री को अपनी शैली में बदलाव करना पड़ेगा। सरकार कभी आठ पन्ने का पत्र जारी कर रही है तो कभी पर्दे के पीछे काम कर मामले को सर्वोच्च न्यायालय में ले जा रही है।
वह कहते हैं, दरअसल, सरकार ने जो आठ पन्ने का पत्र जारी किया है, वे आठ कमियां हैं, जिसे सरकार ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार कर लिया है। सरकार को अपना अहं पीछे छोड़कर उन कमियों को स्वीकार करना होगा। बतौर डॉ. सुनीलम, मुझे लगता है कि सरकार का राजनीतिक स्टैंड चाहे जो भी रहे, लेकिन कहीं न कहीं एक सोच की चिंगारी अब वहां जा चुकी है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी किसानों के मामले को मौलिक अधिकार बताया है। कमेटी बनाना तो एक बात है, लेकिन उससे आगे भी सोचा जाना चाहिए। कमेटी बनेगी या नहीं बनेगी, सरकार को अब अगले कदम के बारे में अपनी रणनीति तय करनी पड़ेगी। ये मामला ठंडे बस्ते में नहीं जाएगा। किसान आंदोलन स्थगित नहीं होने जा रहा है। अब ये कई गुना तेजी से बढ़ता हुआ नजर आएगा। चारों तरफ से किसानों के प्रदर्शनों की संख्या बढ़ती जाएगी।
ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के अध्यक्ष सत्यवान बताते हैं, अच्छा हुआ कि समय पर मोदी सरकार का भ्रम दूर हो गया। जिस पत्र के पन्नों को लेकर भाजपा पदाधिकारी गांव-गांव पहुंच रहे हैं, अब वैसे ही उसका जवाब दिया जाएगा। किसान संगठन भी अपना पत्र तैयार कर रहे हैं। देर सवेर इसे जारी कर देंगे। खास बात है कि किसान आंदोलन में कहीं दूर-दूर तक भी निराशा और हताशा नहीं है। सरकार ने आंदोलन तोड़ने के लिए अनेक हठकंडे अपनाए हैं, मगर अभी तक आंदोलन अपनी जगह से नहीं हिल सका। अब तो ये आंदोलन दूसरे राज्यों में भी गति पकड़ने लगा है।
डॉ. सुनीलम कहते हैं, ये आंदोलन केवल पंजाब का नहीं है। बल्कि अब तो असम और मणिपुर में प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। दशकों बाद में कोलकाता में किसानों की बड़ी रैली होना, इस आंदोलन की अहमियत को दर्शाता है। अब ये भावनात्मक मामला बन चुका है। इसमें केवल किसान ही नहीं, अब समाज का हर वर्ग इससे जुड़ने जा रहा है। सत्यवान के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा मध्यप्रदेश में दिया गया भाषण झूठ व निराधार दावों से भरा था। लाखों किसान अब दिल्ली की चौतरफा सड़कों पर हैं। अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भीषण ठंड और भाजपा सरकार के उत्पीड़न और दमन को झेल रहे हैं। उनकी एकमात्र मांग यही है कि किसान-विरोधी तीन कृषि कानूनों को तुरंत रद्द करें। दृढ़तापूर्वक हमारा मानना है कि संघर्षशील किसान उन्हें एक अच्छा सबक सिखाएंगे और सरकार को झुकने के लिए मजबूर करेंगे।