275 से अधिक साधकों ने किए एकासन एवं मंत्र अनुष्ठान

जप एवं तप से दूर होते है कर्म -मुनि श्री प्रशांत

सिलीगुड़ी (वर्धमान जैन): मुनि श्री प्रशांत कुमार जी , मुनि श्री कुमुद कुमार जी की प्रेरणा प्रयास से तेरापंथ युवक परिषद् के आयोजन में प्रथम बार सामूहिक एकासन तप साधना के साथ मंत्र अनुष्ठान का आयोजन हुआ। साधकों को संबोधित करते हुए मुनि श्री प्रशांत कुमार जी ने कहा- मंत्र में बहुत बड़ी शक्ति होती है। मंत्रों का निर्माण करने वाले गुरु होते हैं।जो विशिष्ट साधना कर मंत्रों का निर्माण करते हैं।मंत्र शक्ति के द्वारा कितनी-कितनी समस्या का समाधान मिलता है।मंत्र के प्रति आस्था का भाव होना चाहिए।मंत्र के प्रति श्रद्धा विश्वास का भाव होता है तो मंत्र का वाइब्रेशन भीतर तक जाता है। आभामंडल भी विशुद्ध बनता है।मंत्र की तरंगें दूर दूर तक जाती है एवं भीतर तक प्रभावित करती है। भक्तामर स्तोत्र लोगस्स,णमोथुणं में बहुत सारे मंत्रों का समावेश है।आध्यात्मिक जीवन में कर्म बन्धन एवं निर्जरा का क्रम चलता है। कर्मों को दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार की साधना करनी चाहिए।आध्यात्मिकता से कर्म की निर्जरा होती है। अंतराय दूर होती है। अंतराय कर्म हल्के होने से जीवन में उपलब्धि मिल जाती है। कुंडली में योग होने पर भी कई बार जो चाहा वह नहीं मिला क्योंकि अंतराय कर्म गहरा है। अंतराय कर्म के उदय के कारण से व्यक्ति के जीवन में अनेक प्रकार की समस्याएं आती रहती है। जीवन में अशांति बनी रहती है। जप ध्यान एवं तपस्या से कई कर्म दूर होते है। वेदनीय कर्म ज्ञानावरणीय कर्म हल्के होते है।भगवान महावीर ने साधना के अनेक प्रयोग बताएं। भगवान महावीर ने स्वयं विभिन्न प्रयोगों सेअपने प्रबल कर्मो को क्षय किया। कर्मों को हल्का करने के लिए आध्यात्मिक साधना करनी चाहिए। जप,तप एवं साधना के द्वारा अपनी आत्मा को उज्जवल बना सकते है। तपस्या के विभिन्न प्रकारों में सबसे छोटा तप नवकारसी होता है।श्रावक को प्रतिदिन एक त्याग अवश्य करना चाहिए। त्याग करने से मन पर संयम सधता है। त्याग करने की भावना हमारी आसक्ति को भी कम करती है। त्याग करने से ही लाभ मिलता है। बिना त्याग कर्मो की निर्जरा नही होती है। संकल्प पूर्वक त्याग करने से मनोबल एवं आत्मबल बलवान बनता है। जीवन में छोटे छोटे त्याग करते रहना चाहिए। रात्रि भोजन त्याग का भी अपना बहुत महत्व रहा है। त्याग के साथ जप एवं ध्यान के प्रयोग साधना को ओर विकसित करती है। एकासन के साथ मंत्र का जाप होने से भाव शुद्धि गहरी बनती है।

मुनि श्री कुमुद कुमार जी ने कहा-भोजन का संबंध हमारे शरीर के साथ जुड़ा होता है। शरीर का संबंध साधना के साथ होता है। जितना आवेग एवं आवेश शांत होता है उतनी ही साधना सम्यक होती है। भगवान महावीर ने जीवन काल में साधना की एवं आत्मशक्ति को प्राप्त किया। मंत्र ध्यान की साधना करने के लिए आहार विवेक एवं आहार का संयम की जागरूकता होनी आवश्यक है। एकासन उपवास के साथ ध्यान जप का प्रयोग तप को अधिक सार्थक बना देता है। जैन दर्शन में निर्जरा के बारह भेद में से प्रथम चार भेद का संबंध भोजन के साथ जुड़ा हुआ है।

आचार्य श्री तुलसी एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने भोजन संयम के द्वारा साधना के नए नए अनुभव प्राप्त किए। हमारे जीवन में भावना बहुत बड़ी महत्वपूर्ण होती है। भावों से हमारा आभामंडल पवित्र बनता है। शुक्ला ध्यान की अवस्था में ही केवल ज्ञान की प्राप्ति होती है। तेयुप सिलीगुड़ी अनेक प्रकार के आयोजन कर रही है।एकासन के साथ अनुष्ठान का आयोजन आत्मशक्ति को बढ़ाने वाला है। तेरापंथ युवक परिषद् के सदस्यों से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। तेयुप मंत्री सचिन आंचलिया ने विषय प्रस्तुति दी। आभार ज्ञापन डाॅं भूषण लूणावत ने किया। प्रायोजक बजरंग जी चंद्रकला सेठिया परिवार का आभार व्यक्त किया गया। सिलीगुड़ी में प्रथम बार तेरापंथ युवक परिषद् द्वारा सामूहिक रूप से एकासन अनुष्ठान का आयोजन हुआ।

Sunil Kumar Dhangadamajhi

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