कहां से हैं आते
इतने बादल ।।
बादल में झूला
झूले में चम्पकवन ।।
जाड़े की झोपड़ी में
तीव्र दहन
लटकती इच्छाओं में
लाखों रंगों के
गीत ।।
पुष्पधनु में तिरे
जगमग स्वर सर्दी का
देखो घिर रही है घटाएं
तुम अब अकेले हो खड़े
चांदनी रात में
या
रात के चांद पर !!!
✒️मूल ओड़िया: प्रफुल्ल चंद्र पाढ़ी
कोलनरा, रायगडा जिला
मो_8917324525
✍🏾अनुवाद: ज्योति शंकर पण्डा
शरत, मयूरभंज


