कविता: जीवन की परछाई

नदी की धीमी धारा में
ललित स्वर का कंपन ।

धीमी नदी की चाल में
संगीत के ताल ।

तुम ऐसी गई कि
फिर पलटकर भी नहीं देखी ।

धूप के कमरे में
धीमी नदी की आवाज ।

आधी धूप,आधे छांव में
खेल रही
व्याकुल ज़िन्दगी की
टूटी-फूटी ग़ज़ल ।

कंपकंपाती जीवन की‌ परछाई
है यहीं
है नहीं ।‌।

✒️प्रफुल्ल चंद्र पाढ़ी
कोलनरा, रायगडा जिला
मो_8917324525

✍🏾अनुवाद : ज्योति शंकर पण्डा
शरत,मयूरभंज

Sunil Kumar Dhangadamajhi

𝘌𝘥𝘪𝘵𝘰𝘳, 𝘠𝘢𝘥𝘶 𝘕𝘦𝘸𝘴 𝘕𝘢𝘵𝘪𝘰𝘯 ✉yadunewsnation@gmail.com

http://yadunewsnation.in

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *