✒️ मूल ओड़िआ: प्रफुल्ल चंद्र पाढ़ी
होना है जो,वही होगा ।
मछली से मांगा ख्वाब
महावर से गीत ।
अपूर्व संभावनामय सुबह का
करता रहा इंतेज़ार
लेकिन रात ही कटी नहीं
पास पहले पहुंचने की
गोपन इच्छा में
सारे परिंदे शब्द हो गए ।
मेरे टूटे स्लेट पर
धुंधले धुंधले अक्षर
सुनने वालों की विरक्ति के ओर
तनिक भी नहीं मेरी दृष्टि
मुझे मिल चुके हैं
ख्वाब और गीत ।।
कोलनारा,रायगडा जिला
मो_8917324525
✍🏾 अनुवाद : ज्योति शंकर पण्डा
शरत, मयूरभंज