पिता कन्यादान के साथ कन्या को परिवार, समाज, धर्म के संस्कार दें -मुनि प्रशांत
इस्लामपुर (वर्धमान जैन): मुनिश्री प्रशांतकुमारजी मुनि श्री कुमुद कुमारजी के सान्निध्य में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के निर्देशन में तेरापंथ महिला मण्डल इस्लामपुर द्वारा कन्यादान आखिर क्यों? कार्यक्रम आयोजित हुआ। परिषद को सम्बोधित करते हुए मुनि प्रशांत कुमार जी ने कहा- ज्ञान वस्तु है क्या? फिर भी ज्ञान का दान दिया जाता है।अभयदान भी कोई वस्तु नहीं है। आपके जीवन में जो अच्छाइयां है, जो गुण है वह धन है। साधु जीवन मे चारित्र है वह सबसे बडा धन है। जो पांच महाव्रत है वह धन है। साधु को अपने धन की सुरक्षा करनी है। महाव्रतों का सम्यक रूप से पालन करके आत्मा को पापकर्म से बचाना है। कन्या अपने आप में धन है। कन्या को सौंपने का मतलब कन्या को दान के रूप में देना नहीं अपितु कन्या का आगामी भावी जीवन उसके पति के हाथ में सुरक्षित रहें। कन्यादान की रस्म सामाजिक दृष्टि से स्वस्थ परम्परा है। शब्दों में उलझे नहीं यह सामाजिक व्यवस्था, दायित्व तथा गृहस्थ जीवन का कर्त्तव्य है। सब अपनी-अपनी परम्परा विधि के अनुसार दायित्व निभाए। पिता अपनी पुत्री को जिस व्यक्ति को सौंपता है वह उसका संरक्षण करता है। यह समाज को जोड़ने का कार्य है। परिवार का कर्तव्य बनता है कि कन्या को यह संस्कार दे कि वह सामंजस्य बैठाएं। परिवार में प्रेम, शांति, सौहार्द के साथ रहने का गुण आना चाहिए।
कन्या परिवार की धुरी बनती है। कन्या के सम्यक संस्कार,सही चिंतन,सहयोग भाव परिवार को स्वर्ग बना देता है। परिवार को संस्कारी बनाना यह शिक्षा का सार होना चाहिए। परिवार में बड़ो के साथ कैसा व्यवहार होना चाहिए ? सेवा का गुण होना चाहिए। मानवीय गुणों का विकास होना चाहिए। वर्तमान समय में सबसे ज्यादा अपेक्षा इस बात की है कि माता पिता कन्यादान के साथ-साथ कन्या को परिवार, समाज एवं धर्म के संस्कारों का ज्ञान दें। एक आदर्श नारी बनकर समाज के लिए प्रेरणा बनें।
मुनि कुमुद कुमारजी ने कहा- जैन दर्शन में तीन दान माने गए अभयदान, ज्ञानदान, सुपात्रदान । दान का मतलब देना ।कन्या को एक पिता कुशल हाथ में सौंपता है। पति अपने धर्म का पालन करते हुए अपनी पत्नी का संरक्षण सम्यक रूप से करता है। पत्नी पति धर्म का पालन करती है। जिससे गृहस्थ जीवन का दायित्व दोनो सम्यक रूप से निभा पाते है।सामाज़िक व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहती है। कन्या वस्तु नहीं है, अपितु व्यवस्था को निभाती है। हम शब्द को नही शब्दों की गहराई को पकड़े कि कन्या को एक व्यक्ति को देना का अर्थ कन्या को बहुत बड़ा दायित्व देना है कि वह पूरे परिवार को चलाएँ।एक कुशल नारी अपने गृहस्थ धर्म की ज़िम्मेदारी निभाती हुई सामाजिक क्षेत्र में मिसाल बनती है।कन्या अन्य शिक्षा के साथ-साथ जीवन की, धर्म की, संस्कारों की सुरक्षा का भी ज्ञान ग्रहण करें। कार्यक्रम का शुभारम्भ महिला मण्डल के गीत से हुआ। महिला मण्डल अध्यक्षा सरिता सिंघी ने वक्तव्य प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मंत्री संगीता गोलछा ने किया।