तुम हजार चांदनी रातों के गीत
तिल तिल होकर झर जाने वाले
शब्दों में
मैं बेमन बटोही
कितने जमाने से जानें
खोया हूं गीत की आत्मा में
जीवन के नर्म पंखुड़ियों पर
नाच रहा हूं
तुम सर हिलाकर मुस्कुराती
मेरे गांव की एकाकी डाली सी
सदा मुझे आछन्न रखती
तुम ;
हो गीत का स्वर
या स्वर के गीत !
मूल ओड़िया: प्रफुल्ल चंद्र पाढ़ी
कोलनरा, रायगडा जिला
मो_8917324525
अनुवाद : ज्योति शंकर पण्डा
शरत,मयूरभंज