नई ज्योति लेकर आए आचार्य भिक्षु -मुनि ज्ञानेन्द्र
शिलांग
आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनिश्री ज्ञानेन्द्र कुमार जी मुनिश्री प्रशांत कुमारजी के सान्निध्य में 266 वां भिक्षु अभिनिष्क्रमण दिवस मनाया गया। जनसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री डाॅ ज्ञानेन्द्र कुमार जी ने कहा – आचार्य श्री भिक्षु नई ज्योति लेकर आए। साधना की उस ज्योति ने धर्म के साथ जुड़े पाखंड को दूर किया। धर्म की यथार्थ और मौलिक व्याख्या ने जनमानस को धर्म का सुपथ दिखाया। उन्होंने भगवान महावीर की वाणी को नये संदेश के रुप में जनता को बोध दिया। आचार्य श्री भिक्षु की यह देन है ये तेरापंथ।आगम मंथन से निकाला हुआ ये तेरापंथ प्रभु का पंथ है। उन्होंने तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना की।आगमवाणी का विशुद्ध रूप से गहराई से अध्ययन कर प्रभु के सिद्धांतों को आत्मसात करते हुए उस पर चलने की प्रेरणा दी। राजनगर से मिली बोधि ने उन्हें धर्म क्रांति करने की प्रेरणा दी। धर्म क्रांति करने के साथ ही परिस्थितिया प्रतिकूल बनी लेकिन पीछे हटना उन्हें मंजूर नहीं था वे चलते गए और कारवां बनता गया। नया सम्प्रदाय बनाना उनका उद्देश्य नहीं था। धर्म की वास्तविक परिभाषा को समझा और स्वत: ही लोग जुड़ते गए। आचार्य भिक्षु अपने आप में एक ग्रंथ है,पंथ है। भगवान महावीर की अवधारणा तेरापंथ की अवधारणा है। युगानुकुल धर्म को परिभाषित कर अनेकों लोगों को सम्यग पथ प्रदान किया।
मुनिश्री प्रशांत कुमारजी ने कहा – वर्तमान में भगवान महावीर का संघ चल रहा है। भगवान महावीर के समय अलग अलग पंथ सम्प्रदाय नहीं थे। वर्तमान में अनेक सम्प्रदाय है उसमें तेरापंथ संघ के प्रवर्तक आचार्य भिक्षु ने आज रामनवमी के दिन धर्म कांति की। आचार्य भिक्षु ने शुद्ध साधना करने के लिए सुविधा और विरोध की परवाह कभी नहीं की और आत्मसंयम,आत्मसाधना में सतत लगे रहे। तीर्थंकर भगवान महावीर की वाणी पर श्रद्धा रखते हुए लोगों को सम्यग बोध दिया।कोरा ज्ञान ही जीवन में अर्जन न करें भगवान की वाणी के प्रति श्रद्धा आस्था रखते हुए उस पथ पर चलने से आत्मकल्याण होता है। व्यक्ति का सही विकास होता है। आचार्य भिक्षु का आचरण उच्च कोटि का था आचार और अनुशासन के द्वारा संघ में मर्यादा व्यवस्था का निर्माण किया जिससे संघ में सम्यक साधना चलती रहें। आचार्य भिक्षु का नाम आज हजारों हजारों लोग श्रद्धा आस्था से स्मरण करते हैं।उनका नाम चमत्कारी रूप से जनमानस में आस्था का रुप लिए हुए है।
मुनिश्री कुमुद कुमारजी ने कहा – आचार्य भिक्षु ने भगवान महावीर के सिद्धांतों को जीवंत रूप से आत्मसात किया।अपनी साधना, प्रज्ञा, तपस्या से आत्मकल्याण – पर कल्याण में सतत् जागरुक बनें रहें। उन्होंने भगवान महावीर की वाणी को सम्मुख रखकर मर्यादा अनुशासन को संघ में स्थापित किया।आचार्य भिक्षु को जानने का मतलब भगवान महावीर के सिद्धांतों को समझना। महिला मंडल से श्रीमती वंदना बोथरा ने विचारों की अभिव्यक्ति दी।
रिपोर्ट: बर्धमान जैन