जीवन में धर्म एवं धन दोनों का संतुलन रहें -मुनि प्रशांत
जोरहाट (वर्धमान जैन): श्वेताम्बर परम्परा से मुनि श्री प्रशांत कुमार जी एवं दिगम्बर आचार्य प्रमुख सागर जी का संयुक्त प्रवचन “हमारे संस्कार हमारी संस्कृति” आयोजित हुआ। जनसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री प्रशांत कुमार जी ने कहा- भारतीय संस्कृति संस्कार का अपना महत्व है। संस्कार एवं संपदा दोनों का अपना-अपना महत्व होता है।साधु को संपदा नहीं चाहिए क्योंकि वह अपरिग्रही होते है।
गृहस्थ जीवन में संस्कार एवं संपदा दोनों जरुरी है। धर्म एवं धन दोनों में संतुलन होना चाहिए। आवश्यकता की पूर्ति धन से होती है। परिवार की समृद्धि न केवल धन से अपितु संस्कार से होती है। संस्कार परिवार का मूल है, मूल मजबूत नहीं है तो इमारत ज्यादा समय टिकती नहीं है। परिवार में संस्कार नहीं है तो घर का माहौल अशांत हो जाता है। बच्चों को गर्भ से ही संस्कार दे दिया जाए तो जीवन का सम्यक निर्माण हो जाता है। संगत का जीवन में असर होता है। संत महात्मा के संपर्क में आने से संस्कारों का परिष्कार होता है। समाज एवं परिवार सुखी हो जाता है। खान-पान परिधान एवं व्यवहार से संस्कारों का विकास होता है। वहीं वास्तविक विकास होता है।
दिगम्बर आचार्य श्री प्रमुख सागर जी ने कहा- हमें जीवन में सहज सरल रहना है। जीवन का विकास गुणों से होता है। संत दर्शन सब जीवों के लिए कल्याणकारी होता है। हमें अपनी संस्कृति संस्कारों को नहीं बदलना है। समय संपत्ति तभी सार्थक बनते हैं जब जीवन में संस्कार होते है। परिवार के सदस्य चिंतन करें कि हम अपने संस्कारों का आदान-प्रदान कैसे कर सकते है। परिवार में संस्कार अच्छे होते हैं तो समाज की देश की संस्कृति अच्छी रहती है। संस्कारों से हमारा खान-पान एवं खानदान दोनों सुधर जाते है। संस्कारों को बांटने का प्रयास करें। हमें चिंतन करना है कि हम अपनी संस्कृति अपनी सभ्यता को पवित्र कैसे रख सकते हैं।
मुनि श्री कुमुद कुमार जी ने कहा- भारतीय संस्कृति, सभ्यता गौरवशाली रही है।भारत को विश्व गुरु माना जाता है। ऋषि मुनि ने अपनी साधना तपस्या से संस्कृति को जीवंत रखा है। समय के साथ भौतिकता का विकास तो हुआ लेकिन हमारी संस्कृति सभ्यता संस्कारो का विकास रुक गया । बच्चों को अगर संस्कारी बनाया जाता है तो हम अपने भविष्य को सुरक्षित रख सकते है।संस्कृति सभ्यता संस्कार के गौरव को आगे बढ़ाने के लिए सतत प्रयास करते रहे। जिससे हमारा समाज परिपक्व बन सकें। सभा के अध्यक्ष रतनलाल भंसाली ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। महिला मंडल ने गीत के द्वारा अपने भाव को व्यक्त किया।