आध्यात्मिक शक्तियों का विकास करता है लोगस्स -मुनि प्रशांत
सिलीगुड़ी (वर्धमान जैन): मुनि श्री प्रशांत कुमार जी मुनि श्री कुमुद कुमार जी के सान्निध्य में ” लोगस्स साधना अनुष्ठान अभिनव प्रयोग” कार्यक्रम आयोजित किया गया। मुनि श्री प्रशांत कुमार जी ने इस अवसर पर कहा – लोगस्स पाठ जैन धर्म का बहुत ही चमत्कारी और प्रभावशाली पाठ है। यह जन- जन में इसलिए प्रचलित हो पाया है कि इसके जाप करने से अनेकानेक विघ्न बाधाएं दूर हो जाती है। एक मंगलमय वातावरण का निर्माण होता है। लोगस्स की साधना करने की अनेक विधियां प्रचलित है। इसकी साधना करने से कार्य में सफलता और सिद्धि प्राप्त होती है। मानसिक,शारीरिक एवंआध्यात्मिक शक्तियों का विकास होता है। लोगस्स में चौबीस तीर्थंकर का स्मरण किया जाता है। उनको याद करके अपने प्रति मंगल कामना की जाती हैं। अपने आरोग्य के लिए, अपनी सिद्धि के लिए। जैसे तीर्थंकर के अंदर तेजस्विता है, ओजस्विता है, निर्मलता है, पवित्रता है इसी तरह कामना की जाती है कि मैं भी तीर्थंकर की तरह ओजस्वी बनूं , तेजस्वी बनूं ,निर्मल बनूं। आरोग्य को प्राप्त करुं और मुझे भी सिद्धी की प्राप्ति हो ऐसी कामना इस लोगस्स के माध्यम से की जाती है। चौबीस तीर्थंकरों में एक अलग ही शक्ति होती है। उस पवित्र आत्मा ने आत्मसाधना कर सिद्धि को प्राप्त किया । मोक्ष का परमानन्द प्राप्त किया। उनका स्मरण करने से स्वयं की आत्मा में शुद्धि आए, भाव में पवित्रता आए, विचारों में निर्मलता आए ऐसी भावना एवं कामना की जाती है। चौबीस तीर्थंकर के माध्यम से व्यक्ति अपनी आत्म साधना करता है।अब तक अनंत तीर्थंकर और सिद्धात्माएं हो चुकी है। अनंत सर्वज्ञ, केवलज्ञानी हो चुके है।उन सभी की दिव्य पोजिटिव एनर्जी इसी ब्रह्माण्ड में विद्यमान है। देवी शक्तियों से भी अनंत गुणा अधिक पोजिटिवीटी, पवित्रता तीर्थंकर की एनर्जी में होती है। उस दिव्य और सबसे अधिक पोजिटिव एनर्जी को ग्रहण करने का एक अभिनव प्रयोग मुनि श्री ने करवाया।इसके पश्चात् शरीर में स्थित सात चक्रों पर लोगस्स के एक एक पद्य का उच्चारण और सामूहिक मंत्र जप करवाया। सभी चक्रों पर अलग अलग मंत्रों के सामूहिक जाप से पूरा वातावरण ऊर्जामय बन गया।


